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“शुक्र ग्रह” आखिर क्या फल देता है जन्म कुंडली में…जाने

जाने जन्म कुंडली में “शुक्र ग्रह” के प्रभाव के बारे में, आखिर क्या फल देता है जन्म कुंडली में… =ज़रूर पढ़े= पीड़ा से बचने का समस्त उपाय ज्योतिषाचार्य एस सी गुप्ता के पास…

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1.लग्न में शुक्र के स्थित होने पर व्यक्ति अनेक कलाओं में पारंगत होता है| दूसरे की जीवन साथी में अधिक रूचि, विचार अच्छे होते है पर कर्म नहीं| मधुरभाषी तथा सुन्दर अंगों वाला संयमहीन तथा शीघ्र ही सवंमित होता है| विलासी, प्रवास करने वाला घुमक्कड़ और अनेक सम्बन्ध बनाने वाला होता है|

2. स्थान में शुक्र होने से जातक को ठंडा व् मीठा खाना अधिक पसंद करता है| विलासिता में सभी धन खर्च कर देता है| कौवे की भांति जो नहीं खाना चाहिए वो खा लेता है| कुचेष्टि, दुःप्रवृत्ति, संकट पड़ने पर कद्दू की भांति व्यवहार वाला होता है| संकट पड़ने पर राज्य प्रसार सिकुड़ जाता है| मधुमेह रोग होता है| परिवार के लिए अप्रिय व्यक्ति होता है| दूसरों में त्रुटियां निकालते है|

3.तृतीय भाव में शुक्र होने पर जातक की पुत्रियों को कष्ट रहता है तथा जातक कपटी होता है| अत्यन्त क्रोधी, अंधविश्वासी तथा व्यसन में रत रहता है|
भाई का धन हड़पने वाला अधिक घमंडी जल्दी-जल्दी बोलने वाला विकृत चेहरे वाला, दान देने को कहता है पर देता नहीं| परन्तु दयालु होता है| जातक सयमि नहीं होता|

4. चतुर्थ स्थान में शुक्र होने पर जातक ह्रदय का रोगी, दूसरों का धन हड़पने का योग और अपने मां के तथा बच्चों के मां के धन को ठगने वाला, माता-पिता के लिए अरिष्ट, बहुत धनि और बहुत संतान वाला जातक होता है| अनेक देशों का भ्रमण करता है और निरन्तर कार्य करता है| स्वयं प्रशंशक होता है और बहुत नौकर चाकर होते है|

5. पंचम स्थान में शुक्र होने से जातक के अनेक प्रणय सम्बन्ध होते है| और प्रणय सम्बन्ध के लिए घर छोड़ देते है| अर्थात भाग जाते है|श्रृंगार प्रिय होते हैं, बहुत सम्मान चाहते हैऔर अधिक उत्साही होते है| माता से विरोध होता है| अधिक कन्याओं का जन्म होता है| बुद्धि परिवर्तनशील होती है| मनोरंजन में अधिक रूचि होती है|

6. छठे भाव में शुक्र होने से पुत्रों को कष्ट और पत्नी रोगणी होती है| जातक को उच्च पद प्राप्त होता है| गूढ़ ज्ञान होता है| नेत्र रोगी और शर्करा रोग की सम्भावना होती है| ठण्ड से प्रभावित, धर्म में विशेष रूचि होती है| जातक संतोषी और समदर्शी होता है|

7. सप्तम भाव में शुक्र-व्यक्ति घर की उपेक्षा करने वाला होता है| पर स्त्री में आशक्ति रखता है| मध्य आयु में जीवन साथी से वियोग हो जाता है| वह अत्यन्त क्रोधी होता है| उसकी पत्नी झूठ और कर्कश वाणी बोलने वाली होती है| पिता से शनि की तरह विरोध रहता है| दृष्टि में दोष (भेंगापन) होता है| पिता को मधुमेह रोग होता है तथा पुत्र को मानसिक रोग होता है|

8. अष्टम भाव में शुक्र- प्रणय (प्रेम) सम्बन्ध को लेकर परिवार शत्रुवत व्यवहार करता है| वाणी अत्यन्त मधुर होते हुए भी विषैली हो जाती है| अत्यन्त बुद्धिमान माता के स्नेह का पात्र और माता की शक्ल सूरत वाला होता है| अधिक सम्मान चाहने वाला और समृद्धिवान जातक होता है|

9. धर्म स्थान में शुक्र – व्यक्ति अधिक धार्मिक प्रवृत्ति व् कम शत्रु और अधिक मित्रों वाला, अत्यधिक विलासी और श्रृंगार करने वाला,चिरयुवा, परिवार का मुखिया होता है| पिता से सदैव मतभेद-विरोध रहता है| पत्नी घुमक्कड़ और झूठ बोलने वाली होती है| पुत्र-पुत्रिया अधिक होती है| जातक चंद्रमणि के सामान द्रविभूत होता है|

10. दशम भाव में शुक्र – पिता का प्रिय, माता का विरोधी, श्रृंगार में रूचि अनेक प्रेम सम्बन्ध बंनाने में बुद्धि लगती है| जातक अधिक बोलने वाला होता है| सुन्दर दिखने वाला आकर्षण का केंद्र होता है| सुन्दर अंगों वाला होता है| अनेक प्रेम सम्बन्ध बनाने वाला होता है| गले में टॉन्सिल की शल्य क्रिया होती है| सदैव व्यय करने वाला होता है|

11. एकादश स्थान में शुक्र – पत्नी रोगणी होती है| जातक घर में रूचि न लेकर दूसरे के कार्यों में रूचि लेता है| जो चाह ले वही करता है| प्रतिष्ठा के लिए अत्यन्त निष्ठावान और स्वेक्षाचारित होते है| अत्यन्त महत्तवाकांक्षी और कामना रखने वाले होते है| कभी-कभी वाक् युद्ध करने वाला होता है| त्याग करने वाला समझौता नहीं करते जो सोंचा वही करते है| अधिक सोने वाला, कर्मठ और सुन्दर होता है|

12. द्वादश भाव में शुक्र होने से जातक सर्वगुण संपन्न होता है| वाणी व्यवहार में व्यंग करने वाला होता है| ज्ञानी होते हुए भी सम्मान चाहता है तथा सम्मान के लिए संघर्षरत रहता है| अनेक प्रकार के कार्य करने वाला अनेक कार्यों को जानने वाला किन्तु किसी एक विषय का विशेषज्ञ नहीं होता| अपना कार्य सिद्ध करने के लिए मित्रता करने वाला और अधिक इच्छा करने वाला दुर्बल शरीर वाला तथा कुटुंबजनों से असंतुष्ट रहने वाला होता है|
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