यूपी की सियासत में गंदगी की गर्द झाड़कर लगातार आगे बढ़ रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ऐन चुनाव के वक़्त एक बार फिऱ चक्रव्यूह में फंसा दिया गया | अब उसे भेदने की चाह में वे भी बग़ावती होकर आर-पार की ठान बैठे, अनायास लगा मानो पूरा समाजवादी कुनबा ही भरभरा गया हो | भाजपा और बसपा तो लगभग ये मान ही बैठी थी की बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा | किन्तु राजनीती के धुरंधर ये यक़ीन ही नहीं कर पा रहे थे कि ऐसा कैसे हो सकता है | ऊपरी परिदृश्य भले ही कुछ भी दिखता हो पर नेता जी मुलायम सिंह यादव का यह कोई दूसरा चरखा दांव भी हो सकता है | और आज ठीक वहीँ हुआ | आखिर बाप ने बेटे को उसकी राजनीती के शिखर पर एक बार फिऱ चमका दिया | भले ही पिछले २४ घंटो के हालात कुछ भी रहे हो किन्तु अंदरखाने में समाजवादी कुनबा क्या पका रहा है यह केवल गिनती के ही लोग जानते थे |
पहले हुए फॅमिली ड्रामे की यह दूसरी स्क्रिप्ट जैसी रही | चौबीस घंटे के भीतर कई तरह की संभावनाएं बनी और बिगड़ी, पर अंततः महानायक की भूमिका में आकर नेता जी ने जो ऐलान किया उससे एक बार फिऱ “अखिलेश की बादशाहत” और “मुलायम की महारथ” देश भर में साबित हो गयी | नोटबंदी की चर्चाओं के बीच चाचा रामगोपाल भी पूरी तरह अखिलेश के साथ ही डटे रहे |
यूपी में जब-जब पीएम् मोदी का ख़ास शो हुआ या होने को है तब-तब राष्ट्रीय चैनल व् अख़बारों में अखिलेश ही छाये रहे | पिछले परिदृश्य के समय मोदी जी की झाँसी रैली समाजवादी कुनबे की कलह में प्रचार पाने से ख़ाख़ हो गयी, तो लखनऊ रैली के दो दिन पहले कुछ ऐसा ताना-बाना बुना गया की भगवा के आगे समाजवादी परचम ही लहराता रहा |
आख़िर मुलायम जैसा राजनीती का चतुर ख़िलाड़ी, जिसकी समाजवादी सरकार यूपी में पांच साल पूरे करने जा रही है और वो भी अखिलेश सरीख़े बेदाग़ चरित्र वाले नेता की अगुआई में | उसे इस तरह रसातल में आख़िर क्यों धकेला जा रहा है | मुख्यमंत्री ने लखनऊ को मेट्रो सिटी बना दिया, कई एक्सप्रेसवे दिए, ग़रीबो, मज़लुमो, युवाओं और बेरोजगारों सबकी सुनी | अपनों से बड़ो की खरी-खोंटि सुनकर भी साढ़े चार साल तक वे मुस्कुराते रहे, क्या इसी दिन के लिए | अब देखना सिर्फ ये बाक़ी है कि अखिलेश की बाक़ी बची हसरतें आने वाले दिनों में कैसे पूरी होगी |
सुधीर निगम
रेजिडेंट एडिटर