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राजस्थान के नागौर में किसान के बेटों ने तीन करोड़ का मायरा भरा, सोने-चांदी की बौछार लगा दी

नागौर

 राजस्थान में एक बार फिर मायरा चर्चा का विषय बन गया है। यहां नागौर के साडोकण गांव के तीन भाइयों ने अपनी बहन के बच्चों की शादी में जो किया, उसे जानकर हर कोई हैरान है। उन्होंने मायरे यानी भात में 1 करोड़ 51 लाख रुपये नकद, 25 तोला सोना, 5 किलो चांदी और नागौर शहर में 2 प्लॉट दिए हैं। 7 फरवरी, 2025 को हुई इस कार्यक्रम में बहन के लिए भाईयों ने दिल खोल के मायरा भरा। बता दें कि राजस्थान में बहन के बच्चों की शादी में भाई की ओर से मायरा यानी (तोहफे) देने की परंपरा है। नागौर में यह परंपरा अक्सर करोड़ों के मायरे के रूप में देखने को मिलती है। इससे पहले भी नागौर में 2 करोड़ और 8 करोड़ के मायरे की खबरें सामने आ चुकी हैं।

भांजे और भांजी की शादी में करोड़ों का मायरा

यह मायरा इसलिए भी चर्चा में है, क्योंकि तीनों भाइयों ने मिलकर अपनी बहन बीरज्या देवी के बच्चों, भांजे और भांजी की शादी में 1 करोड़ 51 लाख रुपये नकद दिए। इसके अलावा 25 तोला सोना, 5 किलो चांदी और नागौर शहर में 2 प्लॉट भी मायरे में शामिल थे। यह शादी फरदोद गांव में हुई थी। यहां बीरज्या देवी के पति मदनलाल रहते हैं। भाइयों के नाम हरनिवास खोजा, दयाल खोजा और हरचंद खोजा हैं।
जानिए क्या है मायरे की परंपरा

राजस्थान में बहन के बच्चों की शादी में भाई की ओर से मायरा देने की परंपरा काफी पुरानी है। यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है। आमतौर पर बेटी के पिता या भाई अपनी बहन के बच्चों की शादी में कपड़े और कुछ पैसे मायरे के रूप में देते हैं। मायरे को भात भी कहा जाता है। लेकिन नागौर जिले में यह परंपरा थोड़ी अलग है। यहां अक्सर करोड़ों के मायरे देखने को मिलते हैं, जो लोगों को हैरान करते हैं। कुछ समय पहले ही नागौर में एक टीचर ने 2 करोड़ रुपये का मायरा दिया था। उससे पहले एक और भाई ने 8 करोड़ रुपये का मायरा दिया था। अब यह नया मामला सामने आया है, जिसमें 1 करोड़ 51 लाख रुपये का मायरा दिया गया है।

रामबक्स के दोहिते और दोहिती की आज शादी थी। इनका आज मायरा था। मायरे की रीत-रिवाज नागौर में जायल के खिंयाला का रियासत काल से ही प्रसिद्ध था। रामबक्स अपने परिवार, रिश्तेदारों और मिलने वालों के साथ बेटी के घर दो हजार लोगों के साथ पहुंचे। तीनों भाइयों ने मिलकर अपनी बहन बिराजया को चुनरी ओढ़ाई और मायरे की शुरुआत की। मायरे में एक करोड़ 51 लाख रुपये नकद, 30 तोला सोना, पांच किलो चांदी और दो प्लॉट नागौर शहर में बहन के नाम किए। इस दौरान महेंद्र चौधरी (पूर्व राजस्थान सरकार के उप मुख्य सचेतक) सुनीता चौधरी (पूर्व जिला प्रमुख) और रिद्धकरण लामरोड़ (पूर्व प्रधान जायल) सहित हजारों लोग मौजूद रहे।

नागौर का मायरा सदियों से प्रसिद्ध
नागौर में जायल के जाटों का मायरा सदियों से प्रसिद्ध है। मारवाड़ में इस मायरे को कॉफी सम्मान की नजर से देखा जाता है। गूगल साम्राज्य के दौरान जायल के खियाला और जायल के जाटों ने मिलकर लिछमा गुजरी को अपनी धर्म की बहन मानकर भर गए थे। मायरा आज भी जब शादी होती है और उस समय मायरा आता है तो महिलाएं लोकगीत में भी गाती हैं। कहा जाता है कि खियाला के जाट धर्माराम और गोपालराम दोनों मुगल साम्राज्य में बादशाह के लिए टैक्स कलेक्शन का काम करते थे और टैक्स कलेक्शन कर टैक्स को जमा करवाने के लिए वह दिल्ली दरबार जा रहे थे। जब दोनों भाई दिल्ली टैक्स कलेक्शन दिल्ली दरबार में जमा करवाने जा रहे थे।

इसी दौरान बीच रास्ते में शादी के दिन लिछमा गुजरी नामक एक महिला बिलखती हुई रोती हुई नजर आई। जब उन्होंने कारण पूछा तो लिछमा गुजरी ने बताया कि उसके घर पर शादी है, बेटों की और उसके कोई भाई नहीं हैं, जिसके कारण उसके बच्चों की शादी में अब मायरा कौन लेकर आएगा। तब उन्होंने धर्माराम और गोपाल रामजाट ने ढांढस बांधते हुए कहा कि वह तुम्हारे भाई हैं और तुम चलो घर हम करेंगे मायरा। उस दौरान दोनों जाटों ने अपनी बहन लिछमा गुजरी के लिए टैक्स कलेक्शन के सारे रुपये से मायरा भर दिया। दूसरी तरफ बादशाह नाराज हो गए, वह समय पर नहीं पहुंचे थे। जब वह पहुंचे तब सारी बात बादशाह के सामने रखी तो उन्होंने सजा देने के बजाय उनको माफ कर दिया।

कब हुई मायरे की शुरुआत
मायरे की शुरुआत 600 साल पूर्व नरसी भगत ने शुरू की थी। नरसी भगत का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में 600 साल पहले हुआ था, उस समय हुमायूं का शासन काल था। नरसी भगत जो कि जन्म से ही गूंगे और बहरे थे। वह अपनी दादी के पास ही रहते थे, उनके एक भाई भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था, लेकिन नरसी भगत जो कि एक संत प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। इसी प्रवृत्ति के चलते उनको आवाज और उनका वीरप्पन ठीक हो गया। नरसी जी के मां बाप एक महामारी के शिकार हो गए, नरसी भगत की शादी हुई थी और पत्नी भी भगवान के प्यारी हो गई। नरसी जी की दूसरी शादी भी करवाई, कुछ दिन बीतने पर नरसी जी के घर पर एक लड़की का जन्म हुआ और उसका नाम नानीबाई रखा नरसी बाई नरसी भगत ने अपनी बेटी की शादी अंजार नगर में करवा दी। दूसरी तरफ नरसी जी की भाभी ने उनको घर से निकाल दिया, नरसी भगवान श्री कृष्ण के अटूट भगत हैं।

वह उन्हीं की भक्ति में लीन हो गए, भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के भी दर्शन कर लिए। उसके बाद तो नरसी जी ने सांसारिक मोहेबी त्याग दिया और संत बन गए उधर नरसी भाई ने पुत्री को जन्म दिया और पुत्री विवाह लाइक हो गई। किंतु नरसी को कोई खबर नहीं थी, लड़की के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रसम के चलते नरसी जी को नरसी के पास देने के कुछ नहीं थे, नरसी जी के पास खुद की टूटी-फूटी बैलगाड़ी और बूढ़े 220 हैं। नरसी जी ने अपने कुटुम के भाई लोगों से मदद मांगी, लेकिन उन्होंने भी इंकार कर दिया। अपनी टूटी-फूटी और बूढ़े लोगों को लेकर नरसी भगत अपनी बेटी के घर अंजार पहुंच गए, भक्ति के कारण भगवान श्री कृष्ण ने 56 करोड़ का मायरा भरा था।

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