एकादशी तिथि पर जगत के पालन हार भगवान विष्णु की पूजा का विधान हैं. फाल्गुन माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाई जाती है इसे आमलकी एकादशी भी कहते हैं. रंगभरी एकादशी के दिन विष्णु जी के अलावा भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के बाद पहली बार काशी यानी वाराणसी आए थे और उन्होंने माता पार्वती के गुलाल अर्पित किया था, जिसकी वजह से इस तिथि को रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है.
कब रंगभरी एकादशी?
वैदिक पंचांग के अनुसार, रंगभरी एकादशी यानी फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 9 मार्च को सुबह 7 बजकर 45 मिनट पर होगी. वहीं तिथि का समापन 10 मार्च को सुबह 7 बजकर 44 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार इस बार रंगभरी एकादशी का व्रत 10 मार्च को रखा जाएगा.
रंगभरी एकादशी शुभ मुहूर्त
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4 बजकर 59 मिनट से लेकर 5 बजकर 48 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12 बजकर 8 मिनट से लेकर 12 बजकर 55 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 6 बजकर 24 मिनट से लेकर 6 बजकर 49 मिनट तक
निशिता मुहूर्त- रात्रि 12 बजकर 7 मिनट से लेकर रात्रि 12 बजकर 55 मिनट तक तिथि 11 मार्च रहेगी.
रंगभरी एकादशी का महत्व
मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती विवाह के बाद पहली बार काशी पहुंचे थे. तब शिव गणों ने उनका स्वागत गुलाल से किया था. इस दिन से काशी में होली का शुभारंभ होता है, जो पूरे एक सप्ताह तक चलता है. भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में शिव भक्त दूर-दूर से आते हैं.