TIL Desk #Election / तीसरे चरण के चुनाव से फुर्सत पाए नेताओं के उड़न खटोले इन दिनों बुन्देलखण्ड की फ़िज़ाओं में मंडरा रहे हैं | झाँसी से लेकर चित्रकूट तक कोई भी ज़िला ऐसा नहीं हैं जहाँ इनके हेलीकाफ्टर न उतर रहे हों | अमित शाह बाँदा, राठ व् महोबा के बाद चित्रकूट तक पहुँच गए तो अखिलेश यादव ने बाँदा, हमीरपुर, चित्रकूट व् महोबा ज़िलों में अपने प्रत्याशियों की धरती को मथ डाला | राहुल बाबा झाँसी, हमीरपुर, व् जालौन के बाद सोमवार को तिंदवारी पहुँच गए | झाँसी व् उरई में राजनाथ सिंह भी ख़ूब गरजे | मायावती ने भी अतर्रा व् झाँसी में सभायें की तो चौधरी अजीत सिंह भी पीछे नहीं रहे | दोयम दर्ज़े के नेताओं में साध्वी निरंजन ज्योति, उमा भारती, नसीमुद्दीन सिद्दकी, कलराज मिश्र सरीख़े भी अपने अपने दलों के उम्मीदवारों को जिताने की अपील कर रहे हैं |बाँदा सदर से कांग्रेस के विवेक कुमार सिंह ने तो फ़िल्म अभिनेत्री अमीषा पटेल को बुला कर रोड शो करवा डाला | शहर की सड़कों पर जब उनका कारवां गुजरा तो लोगो ने छतों से पुष्पवर्षा कर अपना भरपूर प्यार उड़ेला |
चौथे चरण का चुनाव 23 फ़रवरी को हैं तो नेता तो आएंगे ही | पर इस बार इन् सबकी ज़ुबाने ज्यादा तेज़ चल रही हैं | पहले भी हमने अटल, आडवाणी, इंदिरा, राजीव, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नांडीज़, वी0 पी0 सिंह सरीख़े नेताओं को ख़ूब सुना | इनके भाषण कितने शिष्ट होते थे | अपनी पार्टी की नीतियाँ व् घोषणा पत्र बताते और वोट की अपील करते थे | तंज भी कसते तो बेहद सम्मानजनक लहज़े में | पर वाह रे इक्कीसवीं सदी के कर्णधारों एक दूसरे को हत्यारा, बलात्कारी, लुटेरा बता रहे हों | परिवार तो छोड़ो बाप-बेंटो तक की लानत मलानत कर घरों में झगड़े करवाते हों | धर्म व् संप्रदाय के नाम नफ़रत की दीवारेँ खड़ी की जा रही हैं |
आज जो बुन्देलखण्ड समस्याओं से घिरा हैं, प्राकृतिक आपदायें फसलों को लीलती हैं | पीने व् सिंचाई के पानी का आभाव हैं ,सड़के जर्जर हैं उनकी बदहाली दूर करने के लिए किसी ठोस कार्य योजना की चर्चा ही नहीं होती | कोई मुफ्त गैस कनेक्शन व् लैपटॉप की बात करता हैं तो कोई समार्टफोन व् प्रेशर कूकर बाँटने की | अखिलेश ने ज़रूर बुन्देलखण्ड की ‘अन्ना प्रथा’ को एक बड़ी समस्या बताकर किसानों का मर्म छुआ | कहाकि दोबारा सरकार बनी तो इसको दूर करेंगे | ताकि छुट्टा घूमने वाले पशु ख़ेती को नष्ट न कर संके | वैसे इस बदहाल इलाके की राजनीति शुरू से ही जातिवाद को प्रश्रय देती रही है | किन्तु इस चुनाव में युवा विकास को हवा देते दिख रहे हैं तो महिलायें नोटबंदी की वजह से अपनी छिपाई रकम उजागर हों जाने से नाराज़गी जाता रही हैं | उन्हें मुफ्त में विलेन वाले गिफ्ट भी लुभा नहीं पा रहे | अब वक़्त क्या करवट बदलता हैं यह तो ग्यारह मार्च को ही पता लग पायेगा |
सुधीर निगम
रेजिडेंट एडिटर
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