” हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।
नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन,
एक तत्व की ही प्रधानता, कहो उसे जड़ या चेतन। ”
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टी.आई.एल.डेस्क/ #संपर्क हिंदी- ” कामायनी ” जिसे हिंदी भाषा के विचारकों ने एक महाकाव्य माना है। ” कामायनी ” के रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं । यह आधुनिक छायावादी युग का सर्वोत्तम और प्रतिनिधि हिंदी महाकाव्य है जो 1936 ई. में प्रकाशित हुई थी | यह जान-जान के प्रिय कवि की अंतिम काव्य रचना भी थी | ‘चिंता’ से प्रारंभ कर ‘आनंद’ तक 15 सर्गों के इस महाकाव्य में मनुष्य के मन की विविध अंतर्वृत्तियों का क्रमिक उन्मीलन इस कौशल से किया गया है कि मानव सृष्टिे आदि से वर्तमान के जीवन के मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास का इतिहास भी स्पष्ट हो जाता है।
कला और शाब्दिक परिपक्वता की दृष्टि से कामायनी छायावादी काव्यकला का उत्कृष्ट प्रतीक माना जा सकता है । चित्तवृत्तियों का कथानक के पात्र के रूप में अवतरण इस काव्य की अन्यतम विशेषता है । इस दृष्टि से लज्जा, सौंदर्य, श्रद्धा और इड़ा का मानव रूप में अवतरण हिंदी साहित्य की अनुपम निधि है । कामायनी प्रत्यभिज्ञा दर्शन पर आधारित है । साथ ही इस पर अरविन्द दर्शन और गांधी दर्शन का भी प्रभाव अलग-अलग सर्गों में मिलता रहता है |
प्रसाद जी ” कामायनी ” काव्य के प्रधान पात्र ‘मनु’ और कामपुत्री कामायनी ‘श्रद्धा’ को ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में माना है, साथ ही जलप्लावन की घटना को भी एक ऐतिहासिक तथ्य स्वीकार किया है। शतपथ ब्राह्मण के प्रथम कांड के आठवें अध्याय से जलप्लावन संबंधी उल्लेखों का संकलन कर प्रसाद ने इस काव्य का कथानक निर्मित किया है, साथ ही उपनिषद् और पुराणों में मनु और श्रद्धा का जो रूपक दिया गया है, उन्होंने उसे भी अस्वीकार नहीं किया, वरन् कथानक को ऐसा स्वरूप प्रदान किया जिसमें मनु, श्रद्धा और इड़ा (तर्क, बुद्धि) के रूपक की भी संगति भली भाँति बैठ जाए। परंतु सूक्ष्म सृष्टि से देखने पर जान पड़ता है कि इन चरित्रों के रूपक का निर्वाह ही अधिक सुंदर और सुसंयत रूप में हुआ, ऐतिहासिक व्यक्ति के रूप में वे पूर्णत: एकांगी और व्यक्तित्वहीन हो गए हैं ।
” कामायनी ” सर्गों के नाम-
1. चिन्ता, 2. आशा, 3. श्रद्धा, 4. काम, 5. वासना, 6. लज्जा, 7. कर्म, 8. ईर्ष्या,
9. इडा (तर्क, बुद्धि), 10, स्वप्न, 11. संघर्ष, 12. निर्वेद (त्याग), 13. दर्शन, 14.
रहस्य, 15. आनन्द
नाम: जयशंकर प्रसाद
जन्म: 30 जनवरी 1890, वाराणसी |
मृत्यु: 15 नवम्बर 1937, वाराणसी |
वाराणसी, #उत्तरप्रदेश, भारत
काव्य-चित्राधार, कानन कुसुम, प्रेम-पथिक, महाराणा का महत्व, झरना, करुणालय, आंसू, लहर एवं कामायनी।
नाटक– सज्जन, कल्याणी परिणय, प्रायश्चित, राज्यश्री, विशाख, कामना, जन्मेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, एक घूंट, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी।
कथा संग्रह– छाया, प्रतिध्वनी, आकाश दीप, आंधी, इंद्रजाल।
उपन्यास– कंकाल, तितली, इरावती।
निबंध संग्रह– काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
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