लखनऊ डेस्क / उत्तर प्रदेश के चुनाव अभी एक साल दूर है लेकिन राजनीति के बड़े दिग्गज अभी से करवट बदलने लगे हैं। समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया अजित सिंह के साथ बातचीत कर रहे हैं। यह बातचीत चुनाव पूर्व होने वाले संभावित गठबंधन के रूप में देखी जा रही है। यह बातचीत ऐसे वक्त में हो रही है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार के दो वर्ष पूरे होने के मौके पर सहारनपुर में रैली कर चुके हैं, और जिसे यूपी चुनाव में बीजेपी के प्रचार अभियान की शुरुआत के रूप में भी देखा जा रहा है।
अभी जब एसपी, आरएलडी गठबंधन का आकार अभी भी धुंधलाहट से भरा हुआ है, ऐसे कयास लगने शुरू हो गए हैं कि समाजवादी पार्टी राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल कर चुके उम्मीदवारों में से किसी एक का नाम वापस लेगी और उसकी जगह अजित सिंह का नाम आगे करेगी। इस बीच, अजित के बेटे जयंत चौधरी को विधान परिषद भेजे जाने की अटकलें भी तेज हो गई हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक जयंत कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से इस संबंध में मुलाकात भी कर चुके हैं।
यह सब यूपी के सियासी गलियारे में अजित की छवि के मुताबिक ही हो रहा है। वह अपने फायदे के हिसाब से साथ निभाने और छोड़ने के लिए जाने जाते हैं। समाजवादी पार्टी के साथ गलबहियां करने से पहले अजित बीजेपी और जेडीयू की तरफ भी पासा फेंक चुके हैं। 2004 और 2007 में मुलायम की सरकार में आरएलडी शामिल रह चुकी है लेकिन दोनों ही दलों में कभी चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं हुआ है।
वहीं, यूपी में कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर राज्य में कांग्रेस को जिंदा करने में जुटे हुए हैं। इस कोशिश में प्रियंका वाड्रा को बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार उतारा जा सकता है। मायावती, 2014 के चुनाव के बाद से राजनीति से बाहर दिखाई दे रही हैं उसी ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम गठबंधन को फिर जीवित करने की कोशिश में हैं जो 2007 में उन्हें सत्ता में लेकर आया था।
राम गोपाल वर्मा ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि 2014 के बाद से अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही आरएलडी के साथ किसी भी तरह के गठबंधन से समाजवादी पार्टी अपने नेतृत्व, मंत्री, विधायक और पश्चमी यूपी की 80 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को खो देगी। समाजवादी पार्टी के समक्ष जो एक और चुनौती है वह उसके 7 राज्यसभा उम्मीदवारों में से किसी एक का टिकट काटने से संबंधित है।