संयुक्त राष्ट्र डेस्क/ संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने भारत में बाल श्रम विधेयक में संशोधन को लेकर चिंता जताई है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार इससे पारिवारिक काम को वैधता मिल सकती है और गरीब परिवारों के बच्चों को नुकसान पहुंच सकता है। संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम ने बच्चों की सुरक्षा के एक सुदृढ़ मसौदे के लिए विधेयक के कुछ प्रावधानों को हटाने और खतरनाक व्यवसायों की पूरी सूची के साथ एक मजबूत निरीक्षण तंत्र की स्थापना का आग्रह किया है।
यूनिसेफ इंडिया में शिक्षा प्रमुख यूफ्रेटस गोबिना ने कहा कि नए बाल श्रम कानून के तहत बाल मजदूरी के कई प्रकार अदृश्य हो सकते हैं और हाशिए पर जीने वाले बच्चों की स्कूली उपस्थिति अनियमित हो सकती है, अध्ययन का स्तर कम हो सकता है और वे स्कूल छोड़ने के लिए विवश हो सकते हैं। गोबिना ने कहा कि द्वितीयक पंजीकरण अब भी पिछड़ा हुआ है। खासतौर पर मजदूरी करने वाले बेहद गरीब बच्चों के लिए।
हालांकि यूनिसेफ इंडिया ने 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मजदूरी से रोकने के लिए बाल श्रम विधेयक में संशोधन को राज्यसभा से हाल में मिली मंजूरी का स्वागत करते हुए कहा कि वह एक प्रावधान को लेकर चिंतित है। जिसमें कहा गया है कि बच्चे स्कूल की छुट्टी के बाद या छुट्टियों में ऐसे कार्यों में अपने परिवार या पारिवारिक व्यवसाय में मदद कर सकते हैं जो खतरनाक पेशों की श्रेणी में न आते हों।
यूएन के अनुसार यह प्रावधान चिंता उत्पन्न करता है क्योंकि यह न सिर्फ पारिवारिक काम को वैध बनाता है, बल्कि यह गरीब परिवारों से ताल्लुक रखने वाले अति संवेदनशील बच्चों को नुकसान भी पहुंचा सकता है। संशोधित विधेयक खतरनाक माने जाने वाले पेशों की सूची को भी कम कर सकता है, जिसका परिणाम अनियमित स्थितियों में काम करने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि के रूप में सामने आ सकता है। यूनिसेफ इंडिया ने विधेयक को मजबूत करने और बच्चों को एक मजबूत एवं ज्यादा सुरक्षित कानूनी ढांचा उपलब्ध कराने के क्रम में परिवार के कारोबारों में बच्चों द्वारा मदद करने के प्रावधान को हटाने की सिफारिश की है। यूनिसेफ के अनुसार, भारत में लगभग 1.02 करोड़ बच्चे बालश्रम के शिकार हैं।