नागपुर डेस्क/ पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बहुलतावाद एवं सहिष्णुता को भारत की आत्मा ’ करार देते हुए आज आरएसएस को परोक्ष तौर पर आगाह किया कि ‘ धार्मिक मत और असहिष्णुता ’ के माध्यम से भारत को परिभाषित करने का कोई भी प्रयास देश के अस्तित्व को कमजोर करेगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे मुखर्जी ने कांग्रेस के तमाम नेताओं के विरोध के बावजूद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयं सेवकों के प्रशिक्षण वर्ग के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात यहां रेशमबाग स्थित आरएसएस मुख्यालय में कही। उन्होंने कहा , ‘‘ हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को सभी प्रकार के भय एवं हिंसा , भले ही वह शारीरिक हो या मौखिक , से मुक्त करना होगा। ’’
मुखर्जी ने देश के वर्तमान हालात का उल्लेख करते हुए कहा , ‘‘ प्रति दिन हम अपने आसपास बढ़ी हुई हिंसा देखते हैं। इस हिंसा के मूल में भय , अविश्वास और अंधकार है। ’’ मुखर्जी ने कहा कि असहिष्णुता से भारत की राष्ट्रीय पहचान कमजोर होगी। उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्रवाद सार्वभौमवाद , सह अस्तित्व और सम्मिलन से उत्पन्न होता है।
उन्होंने राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों का भी हवाला दिया। उन्होंने स्वतंत्र भारत के एकीकरण के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों का भी उल्लेख किया। मुखर्जी ने कहा , ‘‘ भारत में हम सहिष्णुता से अपनी शक्ति अर्जित करते हैं और अपने बहुलतावाद का सम्मान करते हैं। हम अपनी विविधता पर गर्व करते हैं। ’’ पूर्व राष्ट्रपति ने आरएसएस कार्यकर्ताओं के साथ राष्ट्र , राष्ट्रवाद एवं देशप्रेम को लेकर अपने विचारों को साझा किया।