लखनऊ डेस्क/ उत्तर प्रदेश के लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ बहाली का रास्ता साफ हो गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 2012 में दाखिल उक्त रिट याचिका को याचिकाकर्ता द्वारा वापस लेने के कारण इसे निरस्त कर दिया। वर्ष 2016 और 2017 में कुछ याचिका इस बारे में डाली गई थी। जिन्हें न्यायालय ने 2012 की याचिका से सम्बद्ध कर दिया। उक्त सभी याचिकाओं के याचिकाकर्ताओं ने इसे वापस लेने की अनुमति मांगी थी। जिसे न्यायालय ने मंजूर करते हुए याचिकाओं को शुक्रवार को निरस्त कर दिया है।
यह आदेश जस्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी व जस्टिस विकास कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने पारित किया। 2012 में छात्र हेमंत सिंह ने याचिका दायर कर मांग की थी कि उसे चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए। छात्र का कहना था कि विश्वविद्यालय ने आयु सीमा का निर्धारण अकाद्मिक सत्र प्रारम्भ होने के समय से न करके नामांकन की तिथि से किया है, जिससे वह उम्र अधिक होने के कारण चुनाव लड़ने के अयोग्य होने जा रहा है।
छात्र ने आयु सीमा का निर्धारण अकाद्मिक सत्र से करने की मांग की थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया था कि लिंगदोह कमेटी के दिशा-निर्देशों के तहत राज्य सरकार ने लखनऊ विश्वविद्यालय को अभी तक श्रेणीबद्ध नहीं किया है। इनके मद्देनजर कोर्ट ने 3 अक्टूबर 2012 को अंतरिम आदेश पारित करते हुए 15 अक्टूबर 2012 को होने वाले चुनाव पर रोक लगा दी थी। वह रोक चलती रही। अब याचिका वापस लेने के चलते रोक स्वत: समाप्त हो गई है।
राज्य विश्वविद्यालय एबीवीपी प्रमुख विवेक सिंह ने कहा, “विवि में छात्रसंघ चुनाव होना बहुत जरूरी है। यहां लंबे समय से चल रहे भ्रष्टाचार व छात्रों के शोषण पर भी अंकुश लगेगा। अब फिर से विवि राजनीति की नर्सरी चैतन्य होगी। विश्वविद्यालय के कुलपति एस.के शुक्ला ने कहा, “कोर्ट के निर्णय का सम्मान है। छात्रों से ही विश्वविद्यालय है।”