नई दिल्ली डेस्क/ कारगिल संघर्ष के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता सैन्य लोककथाओं का हिस्सा है। बुधवार को उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर सेना और उनके परिवार के अलावा देशभर के कई हिस्सों में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। हालांकि उनके तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर, जो अब उत्तरी सेना के कमांडर हैं, ने बहादुर शहीद बत्रा को अलग ही अंदाज में भावभानी श्रद्धांजलि दी।
लेफ्टिनेंट जनरल वाई. के. जोशी ने सुखोई फाइटर जेट में उसी पहाड़ की चोटी पर उड़ान भरी, जहां कारगिल संघर्ष के दौरान पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए बत्रा और उनके सैनिकों ने वीरता का परिचय दिया था।
कैप्टन विक्रम बत्रा सात जुलाई 1999 को कारगिल की जंग में शहीद हो गए थे। विक्रम बत्रा की शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप का नाम दिया गया। कारगिल युद्ध के 22 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इस युद्ध के हीरो के अदम्य साहस और वीरता की कहानियां आज भी देशवासियों की रगों में जोश भर देती हैं। उनका स्लोगन, दिल मांगे मोर देशवासियों के जुबान पर चढ़ गया था।
उनके बलिदान दिवस को मनाने के लिए, उनके तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर और अब जीओसी-इन-सी, उत्तरी कमान ने बुधवार को सुखोई-30 एमकेआई में बत्रा टॉप पर उड़ान भरी। यह कदम एक कमांडिंग ऑफिसर और उसके अधिकारी के बीच स्थायी संबंध का प्रतीक है।
जोशी ने अपने जांबाज शहीद साथी को आसमान से श्रद्धांजलि अर्पित की। कैप्टन बत्रा अधिकारियों की वर्तमान पीढ़ी को प्रेरित करते रहेंगे। बत्रा को उनके कार्यों के लिए वीरता के लिए भारत के सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 2019 में जोशी बत्रा के भाई विशाल और बत्रा के साथ लड़ने वाले अन्य जवानों के साथ उनके सर्वोच्च बलिदान को मनाने के लिए बत्रा टॉप पर चढ़े थे।