TIL Desk/काले धन पर रोक लगाने के लिए मोदी सरकार की “नोट इमरजेंसी” पर देश में अफरा-तफरी का माहौल है| हम अपने बैंक खाते से अपना ही पैसा दूसरे के आदेशानुसार निकल सकते है| “नोट इमरजेंसी” के समय में स्वास्थ्य सेवा, विवाह, शिक्षा और रोज़मर्रा की ज़रूरतों में बाधा आ रही है| इस “नोट इमरजेंसी” के कारण बहुत से लोगों की जान भी चली गयी, कुछ लोगों ने आत्महत्या तक कर ली है| यात्रा के दौरान लोग भूखे है, जो विद्यार्थी हॉस्टल और किराये पर रहते है वो पानी पीकर रात और दिन बिता रहे है| उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ के मजदूर जो दूसरे राज्यों में जाकर दिहाड़ी की कमाई से अपना पेट पालते है उन्हें सूदखोरों और साहूकारों का शिकार होना पढ़ रहा है, उनकी मेहनत की कमाई लुट रही है | भारत में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी परिवार घरों में खाना बनाकर और झाड़ू पोंछा लगाकर अपना जीवन बिताते है उनके हालात भी बदतर है उन्हें उधारी पर भी सौदा नहीं मिल पा रहा है| कुछ दिनों में सब्ज़ियों का आकाल पढ़ सकता है यदि हालात सामान्य न हुए तो…ट्रांसपोर्ट व्यापार लगभग आधा बंद पड़ा है|
मोदी की घूसखोरों और काले धन पर आसीन लोगों से ये लड़ाई लंबी चलने वाली है| मोदी ने इसे ग़रीबों के हक़ में लड़ी जाने वाली लड़ाई कहा है पर बैंकों में ग़रीबों को धक्का दिया जा रहा है, लाठियां सहनी पढ़ रही है| मेट्रो ट्रेन में तो महिला और बुज़ुर्गों के लिए सीट की व्यवस्था है पर बैंकों में वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं के लिए कोई व्यवस्था नहीं है| जबकि मोदी का सपना है भारतीय बैंकिंग को देशवासियों की मुख्य धारा के साथ जोड़ा जाये| भारतीय बैंक कर्मचारियों का व्यवहार सामान्यतः ही आम जनता के साथ ठीक नहीं रहता है| ऐसे में नरेंद्र मोदी के अचानक नोट बंदीकरण अभियान से आम लोग और बैंक कर्मचारी एवं व्यवस्थायें आमने-सामने है| जिसने भारतीय बैंकिंग व्यवस्था और वित्त मंत्रालय की जान सेवा मुहिम की कलई खोल दी है| व्यापार करने के लिए, शिक्षा के लिए, भवन निर्माण के लिए भारतीय बैंक लोन देने में आनाकानी करते है| आम लोगों को बैंकों के चक्कर लगवा-लगवा कर उनकी हवा निकल देते है ऐसे में बैंकों के सहारे कैसे जियेंगे आम भारतवासी, दूसरी तरफ अमीर नेता, व्यापारी, नेता और ब्यूरोक्रेट मनमाफिक बैकों को अपनी ऊँगली पर नचा रहे है|
मोदी की मुहिम को ग़रीब और ईमानदार जनता ने सर आँखों पर रखा है अगर मोदी की नोट बदलीकरण की व्यवस्था सुदृण होती तो इस पर चार चाँद लग जाते| ये बात सही है कि आज बुद्धिजीवी ग़रीब जनता और माध्यमवर्गीय परिवार अपने आप को मजबूत और शक्तिशाली समझ रहे है अपनी ईमानदारी पर मोदी का दिया पुरस्कार समझ रहे है| खुले आम भ्रष्टाचारी आई.ए.एस, आई.पी.एस, पी.सी.एस, नेताओं सरकारी बाबुओं, व्यापारियों को कोस रहे है जिन्होने उनकी ईमानदारी का पैसा अपने घरों में दबा रखा है| जिसकी बदौलत है और सोंचती थी एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा के सब ठाठ चला जायेगा|
मोदी की मुहिम से घूसखोरी, जमाखोरी, भ्रष्टाचार, नोट के बदले वोट और दहेज़ प्रथा पर कितनी रोक लग सकेगी ये आने वाला समय बतायेगा पर भारतीय जनता को बैंकिंग की आदत लगाने का सपना साकार दिखता है|
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