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जन्म कुंडली में लग्न में चन्द्रमा के होने से माता के आश्रित और माता के सहयोग प्राप्त करने का योग होता है| व्यापार और दाम्पत्य जीवन के सुख में धीरे-धीरे कमी आती है| जातक कृतघ्न और अल्प ज्ञानी होता है|
१. द्वितीय भाव में चन्द्रमा के होने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है| नेत्र में चोट, आंत और पेट में कीड़ों से कष्ट होता है|
२. तृतीय भाव में चन्द्रमा लाभ की बारी आने पर जातक को शिथिल कर देता है| लोग जातक की निंदा करने लगते है|
३. चौथे स्थान में चन्द्रमा पैतृक संपत्ति और पैतृक सुख से वंचित रखता है| जातक का अधिक विकास नहीं हो पाता है|
४. पंचम भाव में चन्द्रमा अनेक प्रेम प्रसंग करता है| संतान जन्म के साथ ख्याति प्राप्त होती है और संतान के युवा होते ही ख्याति क्षीण हो जाती है|
५. सप्तम भाव में चन्द्रमा होने से पत्नी का सुख आधा हो जाता है| जातक अत्यन्त क्रोधी और अनिश्चित जीविकोत्पार्जन वाला होता है| कुटुंब से कटु अनुभव मिलता है|
६.अष्टम भाव में चन्द्रमा हड्डियों के रोग और आंतो के रोग देता है|
७. धर्म स्थान पर चन्द्रमा होने से जातक का जीवन समुद्र मंथन की तरह संघर्षमय और उपेक्षित रहता है| जातक का और सगे भाई का उदर विकार होता है|
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