TIL Desk/Lucknow- मुख्यमंत्री अखिलेश जब विकास के रथ पर सवार होकर भ्रष्टाचार, गुनाहगार और अपराधी मुक्त राजनीति की नींव रखने निकले तो विरोध में पिता, चाचा, चाचा तुल्य पिता मित्रों, चाची, चचेरे और सौतेले भाई और उनके परिवार से घिर गये| अखिलेश को बचाने के लिए जो भी सामने खड़ा हुआ राजनीति के तीर से उसका वजूद मिटा दिया गया| अखिलेश महाभारत के युद्ध में अर्जुन की तरह बेबस अकेले खड़े है सोच रहे है… क्या करूँ! सब तो अपने है जो कर्म की विजय का साथ छोड़कर सत्ता पाने की होड़ में मेरे सामने अकड़े पड़े है|
वर्तमान स्थिति में मुख्यमंत्री अखिलेश का मान मर्दन उनके पिता, चाचा, चाचा तुल्य पिता मित्रों, चाची, चचेरे और सौतेले भाई और उनके परिवार ने किया है| एक प्रतिभाशाली, योग्य नेतृत्व को उत्तर प्रदेश की जनता के सामने स्वयं शर्मिंदा किया है| “यादवमयी समाजवादी पार्टी” का उत्तर प्रदेश में ये कही अंतिम दौर तो नहीं| सत्ता की राजनीति और विकास की राजनीति के मुद्दे पर कहीँ सत्ता की राजनीति जीती तो सपा के दो फाड़ हाने तय है|
युवाओं से भरे भारत में आज युवा कर्मठ नेता कूटनीति का शिकार हो अपनों से ही घिर गया है| युवा सोंच पर घाग सोच की पकी राजनीति हावी हो गयी है| उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल को देखते हुये वर्तमान मुख्यमंत्री की घेराबंदी स्वयं अपनों ने कर दी| ऐसे में अखिलेश यादव का कृष्ण कौन होगा ये देखने का समय है जो उन्हें इस हालात में विजय दिलायेगा| अगर मुख्यमंत्री अखिलेश को उनका सारथी नहीं मिला तो कहीँ उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का ये आखरी विधान सभा सत्र तो नहीं|
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