भले ही निर्वाचन आयोग ने चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया हो पर समाजवादी घराने का सत्ता संग्राम अब भी पल-पल रंग बदल रहा है | लोहिया की समाजवादी धारा में बच्चो की तरह “तेरी साईकिल मेरी साईकिल, मेरी साईकिल तेरी साईकिल ” की दौड़ मची है | आखिर ये साईकिल किसी की होगी या बन्दर बॉट के चक्कर में फ्रीज़ हो जाएगी, इसके आसार ज्यादा बढ़ गए है | मुलायम व् अखिलेश के बीच कई दौरों में होने वाली बातचीत भी अमर सिंह व् रामगोपाल की रणनीतियों की भेंट चढ़ रही है | और पिस रहा है बेचारा समाजवादी कार्यकर्ता जिसकी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा | सबसे ज्यादा मुसीबत में है वे संभावित प्रत्याशी जिनके नाम दोनों ही गुटों की लिस्ट में हैं | सबको चुनाव चिन्ह का ख़ौफ़ सता रहा हैं |
‘साईकिल’ अगर फ्रीज़ हो गयी तो इतने कम समय में नए चुनाव चिन्ह जिसका अभी कहीँ अता-पता भी नहीं हैं, का प्रचार गांव- गांव, घर-घर तक कैसे करेंगे | वैसे भी नोटबंदी ने सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के हौसलें पस्त कर रखें हैं | सीमित संसाधनों के चलते कम से कम सपा के दोनों धड़े कैसे चुनाव लड़ेंगे यह तो आने वाला वक़्त बतायेगा | वैसे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का व्यक्तित्व, उनके द्वारा किये गए विकास परक कार्य, आपराधिक छवि से मुक्ति व् निष्कलंक चेहरा उनके वजूद को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला दिख रहा हैं | मायावती के कार्यकालों को मतदाताओं ने कई बार देखा, कांग्रेस भी बमुश्किल दिल्ली से शीला दीक्षित को ढूंढ कर ला पायी जिनकी थकाऊ-पकाऊ शख्शियत भी सब जानते हैं |
नोटबंदी की मार झेल रही भाजपा भी अब तक कोई ऐसा प्रभावशाली चेहरा नहीं ढूंढ पा रही है जिसे मैदान में ला कर यूपी फ़तेह कर सके | उसे भी केवल मोदी के नाम का सहारा है | लेकिन बिहार, पश्चिम बंगाल व् दिल्ली का हश्र देखा जाये तो इस नाम में भी अब कोई करिश्मा नहीं दिखता |
ले देकर अखिलेश ही नज़र में चढ़ते है | पर सपा में संग्राम के चलते उनकी भी नाव मझधार में ही है | यदि समाजवादी कुनबे में जल्द ही कोई चमत्कार नहीं हुआ तो ग्यारह मार्च को आने वाला चुनाव परिणाम ही बता पाएंगे की अगला सीन क्या होगा |
सुधीर निगम
रेजिडेंट एडिटर