१. मंगल के कारण जातक जन्म से ही क्रोधी होता है| ऐसे जातक की पत्नी के साथ उसका मतभेद होता है| सांस लेने में जातक को तकलीफ होती है| निवास स्थान से पीड़ा एवं जहां-जहाँ जातक जायेगा उसे उस निवास स्थान पर पीड़ा रहेगी|
२. सहज भाव में मंगल होने से व्यक्ति कलह प्रिय होता है| जातक उलटी चाल चलने वाला और घमंडी होता है| लोगों का धन जब्त करने वाला होता है|
३. पंचम भाव में मंगल होने से संतान को कष्ट रहता है| जीविका के अल्प साधन, भ्रम की स्थिति और डराने वाला स्वभाव होता है| बचपन का जीवन संघर्षमय होता है|
४. छठे भाव का मंगल नीच का मंगल होता है भले ही वह छठवीं राशि में हो|
५. सप्तम भाव में मंगल होने से पति पत्नी के जननांगो में अरिष्ट रोग होता है| जातक को अपने व्यापार में भी बाधा आती है|
६. अष्टम भाव में मंगल होने से भाई को शत्रु बनता है| यात्रा में एवं चलते फिरते चोट लगती है, दुर्घटना होती है|
७. धर्म स्थान में मंगल होने से मध्य आयु तक जीवन साधारण रहता है| विवाह के बाद विकास होता है|
८. एकादश स्थान में मंगल होने से संतान से कष्ट, वाहन के रूप में संकट आते जाते रहते है| अच्छा कार्य करने में सदैव विघ्न आएगा| परिवार में सदैव कष्ट बना रहेगा|
९. मोक्ष स्थान पर मंगल होने से जातक ऋण लेने का शौक़ीन होता है| जातक के भाई बंधु विपत्ति में रहते है और जातक के लिए विपत्ति का आयोजन करते है|
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