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भारत का बैंकिंग सेक्टर पूंजी की कमी का सामना कर सकता है : फिच

भारत का बैंकिंग सेक्टर पूंजी की कमी का सामना कर सकता है : फिच

नई दिल्ली डेस्क/ व्यवसाय और आपूर्ति श्रृंखला में उत्पन्न अभूतपूर्व बाधााओं के कारण देश में बैंकों को कम-से-कम दो साल तक संपत्ति गुणवत्ता और कमाई के मोर्चे पर अधिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा लोगों की व्यक्तिगत आय में कमी से भी बैंकों के कर्ज की वसूली व बही-खातों पर दबाव पड़ सकता है। फिच रेटिंग्स ने एक रिपोर्ट में यह कहा है।

रेटिंग एजेंसी ने ‘महामारी संबंधी दबाव के कारण भारतीय बैंकों की नाजुक स्थिति’ विषय पर जारी रिपोर्ट में कहा है कि मार्च 2020 को समाप्त वित्त वर्ष में बैंकों के प्रदर्शन के बारे में जो जानकारी दी गयी है, वह महामारी के कारण उत्पन्न दबाव को प्रतिबिंबित नहीं करता है।

इसमें कहा गया है, ‘‘बैंकों के बही-खातों पर अभी भारत के 25 मार्च से लागू कड़े ‘लॉकडाउन’ उपायों का असर दिखना बाकी है। इतना ही नहीं अल्पकाल में सार्थक रूप से पुनरूद्धार की संभावना कम है। इसका कारण कोविड-19 के नये मामलों में तेजी से बढ़ोतरी है। इससे अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोलने को लेकर आशंका बढ़ी है।’’

रिपोर्ट के अनुसार भारतीय बैंकों का ‘इम्पेयर्ड लोन रेशियो’ यानी कुल कर्ज में से नहीं लौटने की आशंका वाले कर्ज का अनुपात 2019-20 में घटकर 8.5 प्रतिश्त रहा जो 2018-19 में 9.3 प्रतिशत था। इसका कारण कुछ नये कर्ज के लौटाये जाने को लेकर आशंका और ऋणों को निरंतर बट्टे में खाते में डाला जाना है। सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंक कर्ज की लागत कम होने के कारण लाभ में आये हैं लेकिन बैंकों का संपत्ति पर रिटर्न कम था।

रेटिंग एजेंसी के अनुसार, ‘‘फिच का मानना है कि बैंकों के लिये कम-से-कम दो साल तक संपत्ति गुणवत्ता और कमाई को लेकर दबाव ऊंचा रहेगा। इसका कारण व्यापार गतिविधियों और आपूर्ति व्यवस्था में बाधाओं का होना है। इसके अलावा लोगों की व्यक्तिगत आय में कमी से बैंकों के बही-खातों पर दबाव पड़ सकता है।

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