TIL Desk/ #संपर्कहिंदी– हिंदी साहित्य के सागर में छायावाद के विशेष कवि मुकुटधर पांडेय और सियारामशरण गुप्त हैं। हिंदी साहित्य के गर्भ से छायावाद “रोमांटिक उत्थान” काव्य-धारा जन्मी, इसमें जयशंकर प्रसाद, निराला, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा आदि मुख्य कवि हुए। छायावाद नामकरण का पूरा-पूरा श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को जाता है।जिसके आधार पर हिंदी साहित्य में छायावादी युग और छायावादी आंदोलन की शुरुआत हुई। अंग्रेजी साहित्य में जिसे ‘रोमांटिसिज़्म’ (romanticism) कहते हैं, उसी प्रकार हिंदी साहित्य में इसे ‘छायावाद’ कहा गया। ‘गीतांजलि’ पर रवींद्रनाथ को नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद उनका काव्यप्रभाव आधुनिक साहित्य पर पड़ने लगा था| गीतांजलि छायावाद का उत्कृष्ट नमूना है| सन् 1913 के बाद बाँगला के साथ-साथ हिंदी साहित्य पर भी प्रभाव पड़ने लगा|
छायावाद अपने शब्दों की विशेषताओं के कारण पाठको और आलोचकों को अपनी ओर खींचती है| नारी-सौंदर्य और प्रेम-चित्रण, प्रकृत्ति-सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना, इससे अधिक आगे चलकर छायावाद अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद के रूप में सामने आने लगा। नारी को प्रेम का आलंबन मानकर, नारी को प्रेयसी के रूप में ग्रहण करके, नारी यौवन और ह्रृदय की संपूर्ण भावनाओं से परिपूर्ण छायावादी कवियों ने साहित्य को लोकप्रिय बनाया|
भारतेंदुयुग के बाद द्विवेदीयुग के भाषा और छंद की नवीनता दी थी, द्विवेदीयुग के बाद छायावाद ने भाषा और छंद की नवीनता दी। 1918 से 1938 के मध्य महादेवी, निराला, पन्त और जयशंकर प्रसाद ने रूढ़िवादी साहित्य के आवरण को तोड़ा और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के साहित्य की मज़बूत नींव रखी| हिंदी साहित्य के प्रमुख आलोचकों में से एक नामवर सिंह ने कहा है ‘ छायावाद शब्द का अर्थ चाहे जो हो, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी की उन समस्त कविताओं का द्योतक है, जो 1918 से 1936 ई. के बीच लिखी गईं।’ वे आगे लिखते हैं- ‘छायावाद उस राष्ट्रीय जागरण की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है जो एक ओर पुरानी रूढि़यों से मुक्ति चाहता था और दूसरी ओर विदेशी पराधीनता से।’
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सोनजुही की बेल छबीली!
दुबली पतली देह लतर, लोनी लंबाई,
प्रेम डोर सी सहज सुहाई!
फूलों के गुच्छों से उभरे अंगों की गोलाई,
निखरे रंगों की गोराई
शोभा की सारी सुघराई
जाने कब भुजगी ने पाई!
सौरभ के पलने में झूली
मौन मधुरिमा में निज भूली,
यह ममता की मधुर लता
मन के आँगन में छाई!
सोनजुही की बेल लजीली
अंश- सोनजुही / सुमित्रानंदन पंत
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