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लखनऊ: लोहिया विधि विवि द्वारा 2 दिवसीय अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ

लखनऊ: लोहिया विधि विवि द्वारा 2 दिवसीय अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ

TIL Desk लखनऊ:👉डॉ० राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय, लखनऊ की संगोष्ठी समिति के द्वारा 2 दिवसीय अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का शनिवार,1 फरवरी 2025 को उद्धघाटन हुआ। अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में देश और विदेश भर के 200 से अधिक एब्स्ट्रेक्ट आए एवं संगोष्ठी में 107 से अधिक शोध पत्रों को प्रस्तुत किया जाएगा । अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय लॉ, पॉलिसी एंड टेक्नोलॉजी रहा। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव, विशिष्ट अतिथि यूपीएसआईएफएस के संस्थापक निदेशक डॉ जी.के गोस्वामी , मुख्य वक्ता साइबर अपराध और साइबर कानून अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष अनुज अग्रवाल रहे।

विधि विश्विद्यालय के कुलपति प्रो० अमरपाल सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया ।कुलपति महोदय ने बताया कि सब कुछ परिवर्तनशील है, एवं परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है । उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नीती निर्माण विधि निर्माण की प्रथम सीढ़ी है और दोनों को न्यायिक जांच की कसौटी पर खरा उतरना आवश्यक है। डिजिटल युग में नई तकनीकों का आगमन एक महत्वपूर्ण मोड़ ला रहा है, जिसमें ए.आई. भारत में महज एक कदम की दूरी पर है। उन्होंने कहा कि कानून हर व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करता है और डिजिटल क्रांति आज के समय का एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है। डेटा सुरक्षा एक उभरता हुआ क्षेत्र है, और इस विषय पर गहन चर्चा आवश्यक है।

संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ०प्रेम कुमार गौतम ने संगोष्ठी के विषय व उसके उप-विषय की व्याख्या करी। उन्होंने बताया कि इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का विषय भारत में एक चुनौतीपूर्ण विषय को केंद्र में रखती है, जिसमें ए.आई., डेटा गोपनीयता और ब्लॉकचेन जैसी आधुनिक तकनीकों को नीति निर्माण के संदर्भ में जांचा जाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कानून और नीति को मिलकर विकसित होना चाहिए और नीति-निर्माताओं को जटिल विषयों को समझते हुए न्यायपूर्ण एवं सतत समाधान निकालने होंगे।

प्रमुख वक्ता अनुज अग्रवाल ने डेटा गोपनीयता और डेटा एकीकरण पर प्रकाश डाला। उन्होंने वॉलमार्ट द्वारा फ्लिपकार्ट के 25 अरब अमेरिकी डॉलर के अधिग्रहण का उदाहरण देते हुए बताया कि डेटा ही सबसे मूल्यवान संसाधन बन गया है। उन्होंने 2014 में हुए डेटा उल्लंघन के एक प्रमुख मामले (टार्गेट स्टोर्स) का उदाहरण दिया, जिसमें 161 मिलियन डॉलर (लगभग 14 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ, मुख्य कार्यकारी अधिकारी को इस्तीफा देना पड़ा और स्टॉक मार्केट में भारी गिरावट आई। उन्होंने बताया कि “डेटा की शक्ति संकलनीय होती है, यह सदैव एक मूल्यवान संपत्ति बनी रहेगी।” साथ ही, उन्होंने पौराणिक कथाएं से उद्धरण देते हुए डिजिटल युग की प्रासंगिकता को रेखांकित किया। अपने प्रस्तुतीकरण के माध्यम से यह दर्शाया कि किसी भी डिजिटल चित्र के पीछे असंख्य बाइनरी बिट्स और कोड कार्य करते हैं। उन्होंने यह समझाया कि प्रत्येक डिजिटल छवि केवल एक दृश्य मात्र नहीं होती, बल्कि उसके पीछे सूचनाओं का एक जटिल नेटवर्क छिपा होता है। उन्होंने यह उदाहरण देकर बताया कि डेटा ही वह आधार है, जो किसी भी डिजिटल संरचना को अस्तित्व में लाता है। इसके माध्यम से उन्होंने रेखांकित किया और यह स्पष्ट किया कि डिजिटल दुनिया में डेटा की महत्वपूर्ण जानकारी ही सबसे बड़ी संपत्ति है। इसके अलावा, उन्होंने भारतीय दंड संहिता की धारा 161 का संदर्भ दिया, जो कि पुलिस जांच के दौरान गवाहों के बयान दर्ज करने से संबंधित है। उन्होंने बताया कि कैसे गवाह अपना बयान बदल लेते हैं, परन्तु डिजिटल एविडेंस जल्दी नहीं बदला जा सकता और वह एक निष्पक्ष माध्यम है। उन्होंने कहा कि डिजिटल साक्ष्यों के बढ़ते उपयोग के कारण अब यह महत्वपूर्ण हो गया है कि गवाहों के बयान और साक्ष्य सुरक्षित डिजिटल माध्यमों में संरक्षित किए जाएं, ताकि उनकी प्रामाणिकता और सटीकता सुनिश्चित की जा सके।

विशिष्ट अतिथि डॉ जी.के गोस्वामी ने कहा कि “ज्ञान अर्जन सबसे अच्छी साधना है।” उन्होंने अनुज अग्रवाल के विचारों को समर्थन देते हुए कहा कि हम डेटा के युग में प्रवेश कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि विज्ञान और विधि का समावेश आवश्यक है और नई आपराधिक संहिताओं में प्रौद्योगिकी की भूमिका उजागर हुई है। फॉरेंसिक साक्ष्य के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने विधि और विज्ञान के सम्मिलन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने साइबर सुरक्षा की जटिलताओं को समझाते हुए डेटा संरक्षक की अवधारणा प्रस्तुत की।

मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव ने डिजिटल इंडिया की तीव्र प्रगति और डेटा उल्लंघनों के बढ़ते मामलों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि फॉरेंसिक साक्ष्य न्यायाधीशों के लिए निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने छात्रों एवं प्रतिभागियों को सलाह दी कि “हमें डेटा की सीमाओं को समझते हुए खुद को अनुकूलित करना होगा।” उन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि डिजिटल इंडिया की तेज़ प्रगति के साथ-साथ साइबर अपराध और डेटा उल्लंघन के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। उन्होंने न्यायिक प्रणाली में डिजिटल साक्ष्यों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया और बताया कि फॉरेंसिक विज्ञान अब न्यायिक निर्णयों में अत्यधिक सहायक सिद्ध हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने देखा है कि परंपरागत साक्ष्यों की तुलना में डिजिटल साक्ष्य अधिक जटिल होते हैं, और इनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिए साइबर फॉरेंसिक विशेषज्ञों की सहायता लेना आवश्यक हो जाता है।

कार्यक्रम में संगोष्ठी समिति के अध्यक्ष डॉ०प्रेम कुमार गौतम, डॉ० मिताली तिवारी, डॉ० प्रसंजीत कुंडु, डॉ०अंकिता यादव, डॉ० विकास भाटी, डॉ० मनीष बाजपेई, डॉ मनीष सिंह,डॉ शशांक शेखर,डॉ अमनदीप सिंह, डॉ शकुंतला एवं अन्य छात्र एवं प्रतिभागी उपस्थित रहे।

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