लखनऊ डेस्क/ बसपा के कद्दावर नेता माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके बेटे को पार्टी से बाहर कर दिया गया है। नसीमुद्दीन पर टिकट के बदले पैसा लेने का आरोप है। वहीं, अब नसीमुदीन ने इस पर पलटवार करते हुए एक प्रेस नोट जारी किया है। इसमें उन्होंने कहा, जो आरोप मुझ पर लगाए गए हैं, मैं साबित कर दूंगा कि वे निराधार हैं। नसीमुद्दीन ने ये भी बताया कि कैसे 1996 के यूपी चुनाव के दौरान उनकी बेटी की मौत हो गई और वे मायावती को चुनाव लड़ाने में लगे रहे।
नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने 1996 के यूपी विधानसभा का जिक्र करते हुए कहा, इस चुनाव में मायावती बदायूं के बिल्सी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही थीं। उस समय मायावती ने मुझे अपना चुनाव इंचार्ज बनाया था। उस समय मेरी सबसे बड़ी बेटी की तबियत खराब चल रही थी। पत्नी ने फोन पर रो-रोकर कहा कि लौट आइए, बेटी आखिरी सांसें ले रही है।जब इस बारे में मैंने मायावती से फोन पर बात की तो उन्होंने कहा कि चुनाव फंसा हुआ है। तुम ही मेरे इलेक्शन एजेंट और इलेक्शन इंचार्ज हो। तुम्हारे जाने का मतलब चुनाव हारना है।
मायावती ने उस समय स्वार्थवश मुझे जाने नहीं दिया और इलाज के अभाव में मेरी बेटी की मौत हो गई। यही नहीं, मायावती ने अंतिम संस्कार में भी नहीं जाने दिया। इस तरह मैं अपनी बेटी का मरा मुंह भी नहीं देख सका। नसीमुद्दीन ने कहा, ”बसपा 2009 का लोकसभा चुनाव, 2012 का विधानसभा चुनाव और 2014 का लोकसभा चुनाव गलत नीतियों के कारण हारी। लेकिन लोकसभा चुनाव हारने के बाद मायावती ने मुस्लिमों को अपशब्द कहे। साथ ही गलत आरोप भी लगाए। यही हाल 2017 विधानसभा चुनावों में भी हुआ। गलत नीतियों के कारण पार्टी हार गई। वो तोमेरी वजह से 22 फीसदी से ज्यादा वोट पार्टी को मिले।
नसीमुद्दीन के मुताबिक, हार के बाद मायावती समय-समय पर मुझे बुलाती थीं और अपर कास्ट, बैकवर्ड कास्ट को बुरा भला कहती थीं। खासतौर पर उन्होंने मुसलमानों को काफी कोसा। इसका मैंने विरोध भी किया। मायावती के भाई आनंद कुमार और सतीश चंद्र मिश्रा द्वारा अवैध रूप से, अनैतिक रूप से और मानवता से अलग होकर कई बार अलग-अलग मांगें की गईं, जो मैंने पूरा करने से मना कर दिया। इसके लिए कई बार मुझे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। बिना मतलब दबाव बनाया गया।