यूपी डेस्क/ लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने में अभी एक वर्ष हो लेकिन अपने प्रदर्शन को लेकर चिंतित राजनीतिक दलों ने गोटें सजानी शुरू कर दी हैं। खास बात यह कि भाजपा के लगातार बढ़ रहे विजय रथ को रोकने के लिए सपा, बसपा और कांग्रेस सभी की कोशिश भगवा टोली को उसी के फॉर्मूले से मात देने की है। इसमें अपने पैरों पर खड़े होने का संदेश देना और हिंदुत्व पर अपना रवैया नरम रखने की रणनीति शामिल है। यह बात दीगर है कि किसी की शैली आक्रामक तो किसी की रक्षात्मक है। सफलता या असफलता का पता तो लोकसभा चुनाव के नतीजे आने पर चलेगा। पर, विपक्षी दल इस कोशिश को सफलता के मुकाम तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने जन्मदिन के बहाने तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अमेठी दौरे में ऐसे ही संकेत दिए हैं। रही बात सपा मुखिया अखिलेश यादव की तो वह भले ही अभी चुप हों लेकिन एकला चलो की नीति पर ही आगे बढ़ने की संभावना है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह अकारण नहीं है। प्रदेश के निकाय चुनाव और गुजरात के नतीजों ने गैर भाजपाई दलों को इस तरफ बढ़ने के लिए उत्साहित और सचेत कर दिया है। सभी को लगता है कि भाजपा के फॉर्मूले पर चलते हुए किसी दल से समझौता करने के बजाय अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करना ज्यादा ठीक है।
बसपा को निकाय चुनाव में मिले वोट के कारण ऐसा जरूरी लग रहा है तो कांग्रेस को शायद इसलिए क्योंकि उनके अपने काडर के बीच गठबंधन के प्रयोग से बचने की छटपटाहट तेज होती दिख रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर तक कई मौकों पर इस पर बहुत उत्साहित नहीं दिखे। राहुल भी चाहते हैं कि यूपी में कांग्रेस लड़ती हुई दिखे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अभी खुलकर कुछ नहीं बोल रहे लेकिन जिस तरह उन्होंने पिछले दिनों राहुल से दोस्ती के भविष्य पर पूछे गए सवाल को टाला, वह यह बताने को पर्याप्त है कि विधानसभा और निकाय चुनाव में कांग्रेस की स्थिति से उन्हें भी महसूस होने लगा है कि गठबंधन से कोई बहुत लाभ होने वाला नहीं।
यही नहीं, राहुल के अमेठी दौरे में कांग्रेसियों ने यूपी में कांग्रेस की पिछलग्गू वाली छवि तोड़ने पर जोर दिया। राहुल ने भी अपने हाव-भाव से उनकी राय से सहमति जताई। कांग्रेस के लोगों की मानें तो उन्होंने अपने खास लोगों से कहा भी कि मौजूदा स्थिति कांग्रेस के लिए काफी मुफीद हो सकती है, बशर्ते हम लड़ते हुए दिखें। इससे पता चलता है कि कांग्रेस भी गठबंधन को लेकर बहुत लालायित नहीं है।
जिस तरह राहुल गांधी गुजरात के बाद उप्र के अपने पहले दौरे में मंदिर के दर्शन और मकर संक्रांति पर जनेऊ और पंचांग के दान की परंपराओं का पालन करते दिखे, उससे साफ हो गया है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उनकी तैयारी उप्र में भी गुजरात के समीकरणों पर चलने की है।एक तरह से यह संकेत दे दिया है कि सपा की कोशिश मुस्लिम वोट लेने की तो होगी लेकिन इसके लिए वह अपनी छवि को हिंदुत्व विरोधी बनने से बचाने की भी कोशिश करेगी।