State, Uttar Pradesh, हिंदी न्यूज़

रीजेंसी हेल्थ लखनऊ ने क्रोनिक कब्ज से परेशान मरीजों के सही इलाज के लिए नई जांच तकनीक ‘एनोरेक्टल मैनोमेट्री’ शुरू की, इस तकनीक से पेल्विक फ्लोर की कमजोरी की पहचान की जा सकेगी

रीजेंसी हेल्थ लखनऊ ने क्रोनिक कब्ज से परेशान मरीजों के सही इलाज के लिए नई जांच तकनीक 'एनोरेक्टल मैनोमेट्री' शुरू की, इस तकनीक से पेल्विक फ्लोर की कमजोरी की पहचान की जा सकेगी

TIL Desk लखनऊ:👉रीजेंसी हेल्थ लखनऊ ने अपनी पहले से ही आधुनिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी यूनिट में एक और महत्वपूर्ण फैसिलिटी जोड़ दी है। अब यहाँ एनोरेक्टल मैनोमेट्री नाम का एक विशेष डायग्नोस्टिक टेस्ट की सुविधा भी उपलब्ध है। यह जांच पेल्विक फ्लोर डिस्सिनर्जिया जैसी समस्या की पहचान करने में मदद करती है, क्योंकि यह क्रोनिक कब्ज का एक आम लेकिन अक्सर न पहचाना जाने वाला कारण होता है।

इस नई फैसिलिटी के साथ रीजेंसी हेल्थ लखनऊ अब उन कुछ चुनिंदा अस्पतालों में शामिल हो गया है, जो मरीजों को एनोरेक्टल मैनोमेट्री के साथ-साथ बायोफीडबैक थेरेपी जैसी एडवांस्ड सेवाएं भी एक ही जगह पर देते हैं। इससे मरीजों को कब्ज की समस्या का पूरा और सही इलाज मिल सकेगा।

क्रोनिक कब्ज को अक्सर सिर्फ एक पाचन की समस्या मान लिया जाता है। लेकिन कई मरीज जो सालों तक दवाएं, एनेमा या हाथ से मल निकालने जैसे उपाय करने के बाद भी राहत नहीं पाते, असल में पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों की गड़बड़ी से परेशान होते हैं। यह मांसपेशियां ठीक से काम नहीं करतीं, जिससे सामान्य ढंग से पेट साफ नहीं हो पाता है।

रीजेंसी हेल्थ लखनऊ के सीनियर गैस्ट्रोएन्टेरोलॉजिस्ट डॉ. प्रवीण झा ने कहा, “पेल्विक फ्लोर डिस्सिनर्जिया एक मांसपेशियों के तालमेल की समस्या है, जो सिर्फ दवाओं या खानपान में बदलाव से ठीक नहीं होती।”

उन्होंने बताया, “अक्सर यह बीमारी सालों तक पहचानी नहीं जाती, जिससे मरीज निराश हो जाते हैं और खुद से गलत इलाज करते रहते हैं। अब रीजेंसी में एनोरेक्टल मैनोमेट्री जांच की सुविधा शुरू होने से हम इस बीमारी की सही पहचान कर सकते हैं। इससे हम ऐसा इलाज बना सकते हैं जो शरीर को बिना तकलीफ दिए सीधे इस समस्या की जड़ पर काम करे और मरीज को पेट साफ होने की सामान्य प्रक्रिया और बेहतर जीवन वापस दिला सके।”

एनोरेक्टल मैनोमेट्री एक जांच है जो यह देखती है कि मलद्वार (एनस) और मलाशय (रेक्टम) की मांसपेशियां दबाव और हलचल पर कैसे प्रतिक्रिया करती हैं। इससे डॉक्टर यह समझ पाते हैं कि कहीं इन मांसपेशियों में सही तालमेल या ताकत की कमी तो नहीं है।

यह जांच लगभग 30 मिनट में पूरी हो जाती है और यह बिल्कुल सुरक्षित होती है, जिसमें मरीज को बहुत ही कम असुविधा महसूस होती है। जब बीमारी की सही पहचान हो जाती है, तो ज़्यादातर मरीजों को फिजियोथेरेपी और बायोफीडबैक जैसी टारगेटेड थेरेपी से काफी आराम मिलता है।

रीजेंसी हेल्थ लखनऊ के कंसल्टेंट गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. पीयूष ठाकुर ने बताया, “हमने देखा है कि बायोफीडबैक थेरेपी लेने वाले मरीजों में काफी अच्छे नतीजे आए हैं। कई मरीजों ने कब्ज की दवाओं पर निर्भर रहना बहुत कम कर दिया है और उनके पेट साफ करने की क्षमता में भी साफ सुधार हुआ है।”

उन्होंने आगे कहा, “कई मरीजों को इस थेरेपी से ऐसी राहत मिली है जिसकी उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी। इससे वे अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी सामान्य रूप से जीने लगे हैं। यह देखना बहुत सुकून देने वाला होता है कि बिना किसी सर्जरी या तकलीफ के इलाज से मरीजों की सेहत और जीवन दोनों में कितना बड़ा फर्क आ सकता है।”

रीजेंसी हेल्थ लखनऊ ने पिछले चार महीनों में सीजीएचएस (CGHS) लाभार्थियों में 30 से ज्यादा मरीजों की मदद की है, जो यह दिखाता है कि अस्पताल अब और भी ज्यादा मरीजों को विशेष गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी देखभाल देने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

अब जब गैस्ट्रो यूनिट में एनोरेक्टल मैनोमेट्री जैसी आधुनिक जांच फैसिलिटी भी जुड़ गई है, तो रीजेंसी हेल्थ लखनऊ एक बार फिर यह साबित कर रहा है कि वह मरीजों को पूरी तरह से केंद्र में रखकर इलाज प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है।

अस्पताल का कहना है कि जो लोग लंबे समय से कब्ज, ज्यादा जोर लगाने की जरूरत या अधूरा पेट साफ होने जैसी दिक्कतों से परेशान हैं, वे खुद इलाज करने के बजाय किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से सलाह लें ताकि सही समय पर सही इलाज मिल सके |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *