नई दिल्ली डेस्क/ संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने सरकार को प्रस्ताव दिया है कि सिविल सेवा परीक्षा के लिये आवेदन को परीक्षा में बैठने के लिये एक प्रयास के तौर पर गिना जाना चाहिये। इसके पीछे का मकसद संसाधनों की बचत करना है। यह प्रस्ताव इस बात को देखते हुए दिया गया है कि नौ लाख से अधिक आवेदकों में से सिर्फ तकरीबन आधे उम्मीदवार परीक्षा में बैठते हैं। सिविल सेवा परीक्षा, 2018 की अधिसूचना के अनुसार किसी उम्मीदवार को परीक्षा में बैठने के छह मौके दिये जाते हैं। यह सीमा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों पर लागू नहीं होती है। अधिकारियों ने कहा कि अगर सरकार प्रस्ताव को स्वीकार कर लेती है तो इससे यूपीएससी के प्रयासों और संसाधनों की बचत करने में मदद मिलेगी।
अधिकारी ने कहा, ‘‘अगर हमें तकरीबन नौ लाख आवेदन मिलते हैं तो हमें परीक्षा में नौ लाख उम्मीदवारों के बैठने के हिसाब से तैयारी करनी होती है, लेकिन उनमें से सिर्फ आधे परीक्षा में बैठते हैं। अगर इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया जाता है तो हम काफी धन, समय और प्रयासों की बचत करेंगे”। अधिकारी ने कहा कि यूपीएससी ने कार्मिक मंत्रालय को अपना प्रस्ताव भेजा है। सिविल सेवा परीक्षा सालाना तीन चरणों–प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार में आयोजित की जाती है। इसके जरिये भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) समेत अन्य सेवाओं के लिये अधिकारी चुने जाते हैं। मौजूदा मानदंडों के अनुसार अगर कोई उम्मीदवार प्रारंभिक परीक्षा के दो में से किसी एक प्रश्न पत्र में वास्तव में उपस्थित होता है तो उसका एक प्रयास गिन लिया जाता है।
अगर कोई उम्मीदवार परीक्षा में बैठता है तो अयोग्य ठहराए जाने/उम्मीदवारी रद्द किये जाने के बावजूद उसका एक प्रयास गिना जाता है।यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिये उम्मीदवार की न्यूनतम आयु कम से कम 21 साल होनी चाहिये और वह 32 साल का होने तक छह प्रयास कर सकता है। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के उम्मीदवार नौ बार परीक्षा में बैठ सकते हैं। अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिये अधिकतम आयु सीमा में पांच साल तक की छूट का प्रावधान है। 2017 में आयोजित सिविल सेवा परीक्षा में नौ लाख 57 हजार 590 उम्मीदवारों ने आवेदन किया था और चार लाख 56 हजार 625 उम्मीदवार वास्तव में परीक्षा में बैठे थे।