TIL Desk #Election/ यूपी के चुनावी घमासान में सपा-कांग्रेस गठबंधन भाजपा व् बसपा के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष हर किसी को नज़र आ रहा है | लेकिन इन् तीनो के बीच सियासी रायता फ़ैलाने का काम चौधरी अजीत सिंह कर रहे है | वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में महज़ नौ सीटों पर सिमटे राष्ट्रीय लोकदल ने भी अब तक 285 प्रत्याशी मोर्चे पर उतार दिए है | जब किसी भी दल से गठबंधन की बात नहीं बनी तो छोटे चौधरी ने सभी का ख़ेल बिगाड़ने का दांव चला | कुछ छोटी-मोटी पार्टियों को साथ मिलाया और उम्मीदवारों की तलाश शुरू कर दी | सपा में मचे द्वंद का फ़ायदा उठा कर शिवपाल समर्थक पांच विधायकों को अपने चुनाव चिन्ह “हैण्ड पंप ” से टिकट दे दिया | बसपा के बाग़ियों ने भी अजीत सिंह की शरण ली और उनसे टिकट पा गए | अन्य दलों के नेता भी चाहे वे भाजपा के हों या कांग्रेस के सभी ने इनके ठिकाने पर शरण पा ली है | बाँदा की बहुचर्चित तिंदवारी सीट जहाँ से राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह तक चुनाव जीत चुके है, में भाजपा ने बसपा से आये ब्रजेश प्रजापति को टिकट दिया तो इलाके कि पूरी भाजपा ही बग़ावत पर उतर आयी और पार्टी के कद्दावर नेता राम कारन सिंह का नामांकन रालोद से करा दिया|
छोटे चौधरी अजीत सिंह अपनी जाट बेल्ट से बाहर पूरी ताकत लगा रहे है | पूछने पर कहते है विधानसभा के परिणाम त्रिशंकु रहेंगे | ऐसे में बिना उनके रालोद के किसी को भी सरकार बनाना मुश्किल होगा | अपने बेटे जयंत चौधरी को वे मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट तो कर रहें हैं पर अंदरखाने के सूत्र बताते हैं कि यदि ऐसे हालात बने तो वे लालू यादव कि तर्ज पर बेटे को डिप्टी सीएम् बनाने तक का समझौता कर सकते हैं |
जाट बेल्ट पश्चिमी उ० प्र० में किसानों के बूते राजनीति करने वाले अजीत सिंह के रालोद को वर्ष 2002 के चुनाव में महज 14 सीटें मिली थी जो 2007 में घट कर 10 व् 2012 में 9 तक पहुँच गयीं | 2014 के लोकसभा चुनाव में तो रालोद का खाता तक नहीं ख़ुला | अब रालोद के लिए यह चुनाव अपना सियासी वजूद बनाये रखने का इम्तिहान हैं | इस पार्टी ने अन्य दलों से आये नेताओं को केवल चुनाव में टिकट ही नहीं बल्कि संगठन में भी जगह दे दी हैं | दस्यु सरगना रह चुके मलखान सिंह ने भी रालोद को अपना राजनैतिक संरक्षक बनाया हैं | भले ही यह चुनाव वे अभी नहीं लड़ सकते पर पार्टी के चुनाव प्रचार में लग गए हैं |
हालांकि वर्तमान चुनावी परिदृश्य में रालोद कहीँ नहीं ठहरता पर यदि दो-चार सीटों का किसी को पेंच फंसा तो अजीत सिंह किसी के भी काम आ सकते हैं | वैसे वे अभी से कह रहें हैं भाजपा कि मदद किसी भी हालत में नहीं कर सकते क्यूँ कि वह नफरत कि राजनीति करती हैं | पर अखिलेश व् मायावती पर तो मेहरबानी दिख़ा ही सकते हैं |
सुधीर निगम
रेजिडेंट एडिटर
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