India

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग ही आखिरी रास्ता, इस्तीफे से किया था इनकार

नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में बड़े पैमाने पर कैश पाए जाने की घटना ने न्यायिक क्षेत्र में भूचाल ला दिया था। मार्च में सामने आए इस प्रकरण ने अदालतों की पवित्रता पर सवाल खड़े किए तो तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन जजों की कमेटी बनाकर मामले की जांच कराई। इस कमेटी ने उन्हें रिपोर्ट सौंप दी थी, जिसमें उनकी भूमिका को गलत पाया गया। जस्टिस संजीव खन्ना ने तुरंत ही जस्टिस यशवंत वर्मा को इस्तीफे का विकल्प दिया। इससे जस्टिस वर्मा ने इनकार कर दिया था और अब उनके खिलाफ महाभियोग का ही रास्ता बचा है।

इसी मकसद से पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने फाइल को राष्ट्रपति और पीएम के पास भेज दिया। अब माना जा रहा है कि मॉनसून सेशन से पहले कैबिनेट की तरफ से महाभियोग का प्रस्ताव लाने को मंजूरी दी सकती है। इसके बाद राज्यसभा में पहले महाभियोग प्रस्ताव को पेश किया जाएगा और वहां से मंजूरी मिलने के बाद लोकसभा में यह आएगा। राज्यसभा में यदि 50 या उससे ज्यादा सदस्य महाभियोग प्रस्ताव लाने का समर्थन करें तभी उसे पेश किया जाता है। इसी तरह लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों की मांग पर ही ऐसा प्रस्ताव आता है। दोनों ही सदनों में सरकार के पास बहुमत है।

ऐसे में यदि कैबिनेट से मंजूरी के बाद महाभियोग लाने पर विचार हुआ तो न्यूनतम सांसदों के समर्थन का संकट नहीं रहेगा। प्रस्ताव को लाने से पहले संबंधित रिपोर्ट को सदन के स्पीकर के पास भी देना होता है। इसे पढ़ने के बाद स्पीकर की तरफ से एक कमेटी का गठन होता है। इस कमेटी में चीफ जस्टिस या फिर सुप्रीम कोर्ट का कोई जज रहता है। इसके अलावा किसी हाई कोर्ट का एक चीफ जस्टिस और एक अन्य कानून का जानकार इसमें शामिल किया जाता है। यह कमेटी तय करती है कि जज पर क्या आरोप तय किए जाने हैं। यह कमेटी संबंधित जज का पक्ष भी सुनती है। गवाहों से सामना भी कराया जा सकता है।

यह कमेटी सभी गवाहों और संबंधित जज का पक्ष सुनने के बाद सदन के स्पीकर को रिपोर्ट देगी। यदि कमेटी पाती है कि जज का दोष नहीं है तो फिर प्रक्रिया रुक जाती है। यदि कमेटी ने जज को दोषी पाया तो फिर महाभियोग की प्रक्रिया आगे बढ़ती है। प्रस्ताव को दोनों सदनों में पेश किया जाता है और उस पर बहस भी होती है। फिर मतदान होता है और यदि दो तिहाई से अधिक सांसदों ने जज को हटाने के पक्ष में मतदान किया तो उन्हें पद छोड़ना होता है। अंत में राष्ट्रपति के साइन के साथ ही प्रक्रिया समाप्त होती है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *