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आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से 600 से अधिक निजी अस्पतालों ने विभिन्न कारणों से बाहर

 नई दिल्ली

साल 2018 में शुरू हुई भारत सरकार की महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना, आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) को लेकर एक बड़ी जानकारी सामने आई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस योजना के शुरू होने के बाद से अब तक 600 से अधिक प्राइवेट अस्पतालों ने स्वेच्छा से इससे बाहर होने का फैसला किया है। इन अस्पतालों ने देरी से भुगतान और कम रिम्बर्समेंट रेट जैसे कारणों का हवाला देते हुए योजना से खुद को अलग कर लिया है।
सबसे ज्यादा गुजरात के अस्पताल हुए बाहर

आयुष्मान भारत योजना से खुद को अलग करने वाले प्राइवेट अस्पतालों में सबसे ज्यादा गुजरात राज्य से हैं। यहां 233 अस्पतालों ने योजना से बाहर होने का फैसला किया। इसके बाद केरल में 146 और महाराष्ट्र में 83 अस्पतालों ने भी इसी तरह का कदम उठाया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव द्वारा राज्यसभा में शेयर किए गए आंकड़ों के अनुसार, कुल 609 प्राइवेट अस्पताल अब तक इस योजना से बाहर हो चुके हैं। यह स्थिति उस योजना के लिए चिंता का विषय बन गई है, जिसका उद्देश्य देश के 10 करोड़ परिवारों या लगभग 50 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करना है।
निजी अस्पतालों की शिकायतें

निजी अस्पतालों का कहना है कि योजना के तहत निर्धारित कम दरें और भुगतान में होने वाली देरी उनके लिए कामकाज को मुश्किल बना रही हैं। कई अस्पतालों ने दावा किया है कि राज्य सरकारों द्वारा समय पर फंड जारी न करने के कारण उनको समय पर पैसे नहीं मिले, जिससे वे इस योजना में भागीदारी जारी रखने में असमर्थ हो रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की हरियाणा इकाई के तहत फरवरी में सैकड़ों निजी अस्पतालों ने योजना के तहत सेवाएं बंद करने की घोषणा की थी, क्योंकि वहां 400 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान बकाया था। इसके बाद, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में भी निजी अस्पताल और नर्सिंग होम एसोसिएशन ने इसी तरह की निलंबन की मांग की।

छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्यों में कुछ ट्रीटमेंट पैकेज केवल सरकारी अस्पतालों के लिए आरक्षित होने और सरकारी अस्पतालों से कोई रेफरल न मिलने के कारण भी निजी अस्पताल इससे बाहर निकल रहे हैं। स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने राज्यसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) ने अंतर-राज्यीय अस्पतालों के लिए क्लेम दाखिल करने के 15 दिनों के भीतर और पोर्टेबिलिटी अस्पतालों (राज्य के बाहर स्थित) के लिए 30 दिनों के भीतर अस्पतालों को क्लेम का भुगतान करने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए हैं।
योजना का उद्देश्य और वर्तमान स्थिति

आयुष्मान भारत योजना को 23 सितंबर, 2018 को झारखंड के रांची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉन्च किया गया था। यह योजना गरीब और कमजोर परिवारों को प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा प्रदान करती है। योजना में शुरू में लगभग 10.74 करोड़ गरीब और कमजोर परिवार शामिल थे, जो 2011 की सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) के अनुसार भारत की आबादी के निचले 40 प्रतिशत हैं। बाद में जनवरी 2022 में लाभार्थी आधार को संशोधित कर 55.0 करोड़ व्यक्तियों या 12.34 करोड़ परिवारों तक कर दिया गया। अकेले 2024 में, इस योजना का विस्तार करके 37 लाख आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा लाभ के लिए कवर किया गया, और साल के अंत में सरकार ने 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 6 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों को इसमें शामिल करने की घोषणा की। बाद में, ओडिशा और दिल्ली PMJAY में शामिल होने वाले 34वें और 35वें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश (UT) बन गए, जिससे इस योजना के तहत 70 लाख से अधिक परिवार और जुड़ गए।
सरकार का जवाब

सरकार का कहना है कि वह इस समस्या को हल करने के लिए कदम उठा रही है। हरियाणा में आयुष्मान भारत की संयुक्त सीईओ अंकिता अधिकारी ने हाल ही में कहा था कि फंड जारी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और एक सप्ताह के भीतर स्थिति को संभाल लिया जाएगा। इसके अलावा, केंद्र सरकार ने निजी अस्पतालों की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए पैकेज दरों की समीक्षा और भुगतान प्रक्रिया को तेज करने की बात कही है।
आगे की चुनौतियां

हालांकि योजना ने अब तक कई करोड़ मरीजों को लाभ पहुंचाया है और करीब 36 करोड़ लोगों को आयुष्मान कार्ड जारी किए गए हैं, लेकिन निजी अस्पतालों का बाहर होना इसके भविष्य के लिए खतरा बन सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भुगतान प्रणाली में सुधार नहीं किया गया, तो और भी अस्पताल इस योजना से बाहर हो सकते हैं, जिसका सबसे अधिक नुकसान गरीब और जरूरतमंद मरीजों को होगा।

आयुष्मान भारत योजना को लेकर उठ रहे इन सवालों के बीच सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी बनी रहे और गरीबों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच प्रभावित न हो। इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है, ताकि यह योजना अपने मूल उद्देश्य को पूरा कर सके।

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