नई दिल्ली
वंदना कटारिया ने इंटरनेशनल हॉकी को अलविदा कह दिया है. भारत के लिए 320 मैच खेल चुकीं 32 साल की स्ट्राइकर वंदना ने भारतीय महिला हॉकी के इतिहास में सबसे ज्यादा मैच खेले हैं. उन्होंने कहा कि वह अपने 15 साल के सुनहरे करियर के शिखर पर विदा ले रही हैं.
2009 में सीनियर टीम में पदार्पण करने वाली कटारिया टोक्यो ओलंपिक 2020 में चौथे स्थान पर रही भारतीय टीम का हिस्सा थीं, जिसमें उन्होंने हैट्रिक भी लगाई. ऐसा करनी वाली वह पहली और इकलौती भारतीय महिला खिलाड़ी हैं. हरिद्वार के रोशनाबाद की रहने वाली कटारिया ने फरवरी में भुवनेश्वर में एफआईएच प्रो लीग में भारत के लिए आखिरी मैच खेला.
वंदना ने कहा ,‘आज भारी, लेकिन कृतज्ञ मन से मैं अंतरराष्ट्रीय हॉकी से विदा ले रही हूं. यह फैसला सशक्त करने वाला और दुखी करने वाला दोनों है. मैं इसलिए नहीं हट रही हूं क्योंकि मेरे अंदर की आग मंद पड़ गई है या मेरे भीतर हॉकी नहीं बची है, बल्कि इसलिए क्योंकि मैं अपने करियर के शिखर पर संन्यास लेना चाहती हूं, जबकि मैं अभी भी अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर हूं.’
उन्होंने कहा ,‘यह विदाई थकान की वजह से नहीं है. यह अंतरराष्ट्रीय मंच को अपनी शर्तों पर छोड़ने का एक विकल्प है, मेरा सिर ऊंचा रहेगा और मेरी स्टिक अभी भी आग उगल रही होगी. भीड़ की गर्जना, हर गोल का रोमांच और भारत की जर्सी पहनने का गर्व हमेशा मेरे मन में गूंजता रहेगा.’
उन्होंने इंस्टाग्राम पर लिखा ,‘मेरे दिवंगत पिता मेरी चट्टान, मेरे मार्गदर्शक थे. उनके बिना मेरा सपना कभी पूरा नहीं होता. उनके बलिदानों और प्यार से मेरे खेल की नींव पड़ी. उन्होंने मुझे सपने देखने, लड़ने और जीतने के लिए मंच दिया.’
हाल में वंदना कटारिया के नाम पर हरिद्वार के रोशनाबाद में मौजूद स्टेडियम का नाम भी रखा गया था, यह ठीक राष्ट्रीय खेलों के आयोजन से पहले हुआ था.
वंदना कटारिया ने रचा इतिहास
उत्तराखंड की बेटी भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया ने एक बार फिर इतिहास रचा है। ओलंपिक खेलों में हैट्रिक बनाने वाली पहली भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी वंदना अब 300 वां अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैच खेलने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी बन गई है। उसका बड़ा भाई पकंज बताता है कि कभी एक जोड़ी जूतों के लिए संघर्ष करने वाली उसकी छोटी बहन ने कड़ी मेहनत कर यह मुकाम हासिल किया है।
वंदना मूल रूप से उत्तराखंड के हरिद्वार जिले की निवासी है। रांची के गोमके जसपाल सिंह एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम में चल रहे महिला एशियन चैंपियंस ट्रॉफी में उसने 300 वां अंतरराष्ट्रीय हॉकी मैच खेलकर प्रदेश और देश का गौरव बढ़ाया है। वंदना के बड़े भाई पंकज के मुताबिक इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उसने काफी संघर्ष किया।
कभी परिवार की यह स्थिति थी कि एक हॉकी स्टिक और अच्छे जूते पाना भी बड़ा सपना था। पंकज ने बताया कि वह खुद हॉकी और अन्य खेल खेलते थे, तब वंदना 12 साल की थी, उसे और उसकी दूसरी बहन रीना दोनों को विभिन्न खेलों में प्रतिभाग का शौक था, लेकिन खेलने के लिए दोनों बहनों के पास जूते नहीं थे। जबकि
पिता ने दिया खेल मैदान में डटे रहने का हौसला
रोशनाबाद स्टेडियम में बिना जूतों के प्रवेश नहीं करने दिया जाता था। यही वजह थी कि दोनों बहनें स्कूल से जल्दी आकर बारी-बारी से उसके जूते पहनकर स्टेडियम में खेलने के लिए चले जाया करती थी। उनके पिता नाहर सिंह ने भी उन्हें खेल मैदान में डटे रहने का हौसला दिया।
हॉकी में कड़ी मेहनत के बूते विश्व में कमाया नाम
हॉकी में अपनी कड़ी मेहनत व संघर्ष के बूते विश्व में नाम कमाने वाली वंदना कटारिया को 2022 में पद्यश्री पुरस्कार मिला। वह 2017 में महिला एशिया कप जीतने वाली भारतीय टीम की सदस्य रही।