जबलपुर
हाईकोर्ट की लार्जर बेंच ने 62 प्रजातियों के पेड़ों की कटाई और परिवहन के लिए प्रदान की गई छूट को निरस्त कर दिया है. चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत,जस्टिस एस ए धर्माधिकारी और जस्टिस विवेक जैन की लार्जर बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि साल 2015 में जारी विवादित अधिसूचना और साल 2017 में किए गए संशोधन वन अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है. इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 48-ए का उल्लंघन करते हैं.
लार्जर बेंच ने विवादित अधिसूचना तथा उसमें किये गये संशोधन को निरस्त करते हुए ट्रांजिट पास नियम 2000 में छूट प्राप्त सभी पेड़ों की प्रजातियों पर तत्काल प्रभाव से लागू की जाये. लार्जर बैंच ने पेड़ों की कटाई को लेकर पुष्पा फिल्म समेत कई उदाहरण देते हुए कार्यपालिका को कड़ी फटकार लगाई.
आम आदमी से समन्वय स्थापित करने के लिए वन विभाग ने साल 2015 और 2017 में 62 प्रजातियों पर टीपी की अनिवार्यता समाप्त कर दी थी। इसके बाद से मध्य प्रदेश में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई चल रही थी। सड़क किनारे खेतों में खड़े आम, बबूल, शू-बबूल, इमली, जामुन, अमरूद सहित अन्य प्रजातियों के पेड़ों को धड़ल्ले काटा जा रहा था। साल 2024 में अवैध रूप से पेड़ काटने के 10 हजार 688 प्रकरण दर्ज हुए हैं। साल 2023 में 50 हजार 180 प्रकरण दर्ज हुए थे। यह स्थिति तब है। जब हाईकोर्ट साल 2019 में 62 प्रजातियों को टीपी मुक्त करने की अधिसूचना पर स्थगन दे चुका है। जिस पर अब फैसला आया है।
स्थगन के दौरान नहीं दिया ध्यान
62 प्रजातियों को टीपी मुक्त करने की अधिसूचना पर 5 साल पहले स्थगन आया था, पर वन विभाग के अधिकारियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। तभी तो अभी तक सड़क किनारे या दूरदराज के इलाकों में निजी भूमि पर खड़े पेड़ों को काटा जा रहा था। अकेले भोपाल की बात करें तो आरा-मशीनों पर रोज 50 गाड़ियां लकड़ी आती हैं। प्रदेश के अन्य शहरों में भी ऐसे ही हालात हैं।
10 हजार के जुर्माने पर छोड़ रहे
इस मामले में हालत यह है कि, पहले तो मैदानी वन अधिकारी और कर्मचारी लकड़ी परिवहन करने वालों को पकड़ ही नहीं रहे और जिन्हें पकड़ते हैं। उनका 10 हजार रुपए का चालान बनाकर छोड़ देते हैं। जबकि ऐसे मामलों में वाहन में मौजूद लकड़ी के बाजार मूल्य की दो गुनी राशि लेने का प्रावधान है।
हाईकोर्ट में 2 लोगों ने की थी याचिका दायर
गढ़ा जबलपुर निवासी विवेक कुमार शर्मा और एक अन्य की तरफ से दायर अलग-अलग याचिका में कहा गया था कि प्रदेश सरकार ने सितम्बर 2015 में जारी अधिसूचना के माध्यम से वृक्षों की 53 प्रजातियों को हटाने के अलावा मध्य प्रदेश परिवहन (वनोपज) नियम, 2000 के नियम 4(2) का प्रावधान भी हटा दिया गया है. जिसके परिणामस्वरूप निजी भूमि पर स्थित वृक्षों को काटने या परिवहन करने के लिए कोई अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है. लोगों के द्वारा उपयोग के लिए अधिक वृक्षों को काटने से पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ेगा. पर्यावरण संतुलन बिगड़ने से मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत संघ के मामले में जारी आदेश के विपरीत है.
लार्जर बेंच ने फैसले में पुष्पा फिल्म का किया जिक्र
लार्जर बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए पुष्पा फिल्म का जिक्र किया. बेंच ने कहा कि "फिल्म पुष्पा में व्यापारियों और सिंडिकेट को उजागर किया है. जो आंध्र प्रदेश के शेषाचलम के घने हरे-भरे जंगलों में लाल चंदन के अवैध परिवहन, व्यापार और बिक्री में लगे हुए हैं. तस्करों और व्यापारियों का सिंडिकेट इतना प्रभाव और दबदबा बनाने लगता है कि पुलिस ,वन विभाग, नीति निर्माताओं और अंततः विधायकों तक शासन का कोई भी हिस्सा अछूता नहीं रह जाता. यह दर्शाता है कि कैसे वन उपज के अवैध व्यापार का परिवहन कर माफिया घने जंगलों में घुस सकता है और राज्य मशीनरी के साथ मिलीभगत करके जंगल की प्राकृतिक संपदा को लूट सकता है. कार्यपालिका वन उपज के ऐसे विक्रेताओं के प्रभाव और दबदबे के आगे झुक जाती है."
'एक जलाशय दस कुएं के समान और दस पुत्र एक पेड़ के समान'
लार्जर बेंच ने अपने आदेश में कहा कि "1 जलाशय 10 कुएं के समान होते हैं और 10 जलाशय 1 पुत्र के समान होते हैं और 10 पुत्र 1 पेड़ के समान होता है. लार्जर बेंच ने 2019 से 2023 तक की एफएसआई रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि मध्य प्रदेश में वन क्षेत्र में 420 वर्ग किलोमीटर की शुद्ध कमी आई है."
'ऐसे ही पेड़ कटे तो 50 साल में आधा वन क्षेत्र हो जाएगा खत्म'
इस आंकड़े में अति सघन वन क्षेत्र में 363 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि और इसी अनुपात में लगभग 630 वर्ग किलोमीटर की भारी और तीव्र कमी और मध्यम सघन वन एवं खुले वन क्षेत्र में लगभग 104 वर्ग किलोमीटर की कमी शामिल है. जिससे शुद्ध आंकड़ा 420 वर्ग किलोमीटर हो जाता है. ये आंकड़े इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं कि हर वर्ष वन क्षेत्र तेजी से कम हो रहे है. मध्य प्रदेश में वन क्षेत्र में कमी इसी गति से होती रही तो अगले 50 वर्षों में अधिसूचित वनों से वर्तमान वन क्षेत्र का लगभग आधा हिस्सा मिट जाएगा.
'कोर्ट ने कहा इंदौर वन विभाग के पत्रों ने चौंकाया'
वर्तमान मामलों के 1500 से ज्यादा पेजों में दस्तावेज रिकॉर्ड का हवाला देते हुए लार्जर बैंच ने अपने आदेश में कहा है कि "पर्यावरणविद राजवीर सिंह हुरा और एनजीओ पर्यावरण प्रहरी के पदाधिकारी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसमें पेश किये गये दस्तावेजों ने हमें चौंका दिया. दस्तावेज में इंदौर के वन प्रभाग के अधिकारियों और वन विभाग के भीतर आंतरिक रूप से आदान-प्रदान किए गए पत्राचार शामिल हैं. वन संरक्षक इंदौर द्वारा अप्रैल 2017 में वन मंडल अधिकारी, इंदौर को संबोधित पत्र में बड़े पैमाने पर हरे-भरे और फलों से लदे पुराने पेड़ों की अवैध कटाई और इंदौर की मंडी में भारी मात्रा में उनके व्यापार का उल्लेख किया गया है. इसके अलावा यह भी कहा गया कि रोजाना लगभग 100-150 वाहन बाजारों में 1000-1500 टन लकड़ी और वन उपज अवैध रूप लेकर पहुंच रहे हैं. जिसका स्रोत निराशाजनक रूप से अज्ञात है. पत्र में आवश्यक कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए गए थे."
इसके अलावा मुख्य वन संरक्षक, इंदौर वृत्त द्वारा वन संरक्षक, इंदौर संभाग को अप्रैल 2019 को लिखे गए पत्र में फिर उल्लेख करते हुए कहा गया था कि 53 प्रजातियों के वृक्षों की छूट अधिसूचना का अनुचित लाभ उठाते हुए इंदौर सहित राज्य के विभिन्न वन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, अवैध कटाई एवं लकड़ी का परिवहन हो रहा है. लकड़ी माफिया द्वारा लकड़ी बाजार में व्यापार के लिए हजारों की संख्या में पुराने हरे-भरे पेड़ों को अवैध रूप से काटा जा रहा है.
कोर्ट ने माना मुख्य वन संरक्षक का पत्र पुख्ता सबूत
मुख्य वन संरक्षक इंदौर वृत्त द्वारा प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षक को जुलाई 2019 में भेजी गई जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि किस प्रकार 53 प्रजातियों को व्यापक छूट देने से इंदौर संभाग के वन एवं गैर-वनीय क्षेत्रों में बड़ी संख्या में हरे-भरे पेड़ों के जीवन पर कहर बरप रहा है. छूट अधिसूचना अवैध रूप से खरीदी गई लकड़ी, काष्ठ और वन उपज के परिवहन को वैध बनाने और जांच व नियंत्रण के बिना व्यापार करने का लाइसेंस बन गई है. मुख्य वन संरक्षक एम. कल्लिदुरई की जांच रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि छूट अधिसूचना को वापस ले लिया जाए या संशोधित करना चाहिये. जिससे नियामक नियंत्रण को पुनर्जीवित किया जा सके और पारगमन की व्यवस्था उन सभी प्रजातियों को पार कर जाए, जो मध्य प्रदेश के जंगलों में प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं.