भोपाल
केंद्र सरकार ने लंबे समय से चली आ रही जातिगत जनगणना करवाने की मांग को मंजूरी दे दी है. सरकार के इस फैसले पर पक्ष और विपक्ष के नेताओं की प्रतिक्रिया सामने आ रही है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने इसे समय की आवश्यकता बताते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय बताया है. मोहन यादव ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट का आभार व्यक्त किया.
मोहन यादव ने केंद्र के फैसले को बताया ऐतिहासिक
डॉ. मोहन यादव ने एक वीडियो संदेश के माध्यम से कहा, " यह एक महत्वपूर्ण फैसला है. आजादी के बाद देश के किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा यह सबसे बड़ा निर्णय है. देश में पुरानी घटनाओं के सुधार की दृष्टि से ये एक महत्वपूर्ण कदम है. कैबिनेट के इस फैसले से समता, समरसता, सुगमता और सामाजिक न्याय के एक नए युग की शुरुआत होगी."
मुख्यमंत्री ने कहा, "दशकों तक कई दलों ने जातिगत जनगणना का विरोध किया. जातिगत जनगणना सिर्फ आंकड़े नहीं होंगे बल्कि देश के गरीब, पिछड़े, कमजोर और वंचित वर्गों के जीवन को बदलने में अहम भूमिका निभाएगा." सीएम ने अभी तक जातीय जनगणना न होने के लिए राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को जिम्मेदार ठहराया.
आजादी के बाद से जातीय जनगणना की चल रही मांग
बुधवार को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट मीटिंग की ब्रीफिंग करते हुए बताया था कि, सरकार ने आगामी जनगणना के साथ जातीय जनगणना कराने का फैसला लिया है. दरअसल, देश में जातीय जनगणना की मांग आजादी के बाद से ही चल रही है. पिछली जातीय जनगणना ब्रितानिया हुकूमत के दौरान साल 1931 में हुई थी. हालांकि, 1941 की जनगणना में भी जातियों की गणना की गई थी, लेकिन सरकार ने इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए थे. 2011 की जनगणना के समय भी इसकी जोर-शोर से मांग उठी थी.
क्या होती है जातीय जनगणना?
जातिगत जनगणना का अर्थ है भारत में मौजूद सभी जातियों के लोगों की अलग-अलग गिनती. यानी देश में अब जब भी जनगणना होगी, उसमें लोगों की जाति के आधार पर भी गिनती होगी. हालांकि, इससे पहले भी देश में जातीय गिनती होती आई है लेकिन सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आंकड़ों को गिना और प्रकाशित किया गया. लेकिन अब अगली जनगणना में ओबीसी की भी गिनती की जाएगी और सरकार उनके आंकड़ों को सार्वजनिक भी करेगी.