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बिटुमेन घोटाला केस में CBI की विशेष अदालत ने लालू सरकार के पूर्व मंत्री समेत 5 लोगों सुनाई सजा

रांची

अविभाजित बिहार  में हुए बहुचर्चित बिटुमेन घोटाला मामले में रांची में CBI की विशेष अदालत ने फैसला सुनाया. इस मामले में बिहार सरकार के पूर्व कैबिनेट मंत्री समते 5 लोग दोषी करार दिए गए हैं. लालू सरकार के पूर्व मंत्री इलियास हुसैन समेत सभी 5 लोगों को 3 साल की कठोर कारावास तथा प्रत्येक पर 32 लाख रुपये का जुर्माना लगाया. यह मामला 1994 का है, जिसमें बिटुमेन की हेराफेरी की गई थी. वहीं सबूतों के अभाव में सात आरोपियों को बरी कर दिया गया.

सीबीआई ने इस मामले में 1997 में प्राथमिकी दर्ज की थी और 2001 में आरोप पत्र दाखिल किया था. लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने पांचों दोषियों को तीन साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई और हर एक पर 32 लाख रुपए का जुर्माना लगाया. विशेष अदालत ने यह फैसला अतिरिक्त न्यायिक आयुक्त प्रभात शर्मा की अदालत में सुनाया.

रांची में सीबीआई की एक कोर्ट ने 27 साल पुराने बिटुमेन परिवहन घोटाले में बिहार के पूर्व मंत्री मोहम्मद इलियास हुसैन और चार अन्य को शनिवार को दोषी करार दिया. कोर्ट ने पूर्व मंत्री, उनके तत्कालीन सचिव शहाबुद्दीन बेग और तीन अन्य, पवन कुमार अग्रवाल, अशोक कुमार अग्रवाल और विनय कुमार सिन्हा को तीन साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई और हर एक पर 32 लाख रुपए का जुर्माना लगाया. अधिकारियों ने कहा कि मामला हल्दिया से बरौनी के रास्ते आरसीडी हजारीबाग तक बिटुमेन की कथित ढुलाई से संबंधित है.

एक अधिकारी ने कहा कि जांच में पता चला है कि बिटुमेन की ढुलाई की ही नहीं गई थी. ट्रांसपोर्टर ने हल्दिया से बिटुमेन लदवाकर कोलकाता के खुले बाजार में बेच दिया और परिवहन शुल्क भी लिया. अधिकारियों ने बताया कि सीबीआई ने इस मामले में 1997 में प्राथमिकी दर्ज की थी और 2001 में आरोप पत्र दाखिल किया था.

यह मामला 1994 का है. उस समय 510 मीट्रिक टन बिटुमेन को बंगाल के हल्दिया से बिहार के हजारीबाग में सड़क निर्माण के लिए भेजा जाना था. इसकी कीमत तब 27.60 लाख रुपये थी. विनय कुमार को यह काम मिला था. पवन और अशोक उनके प्रतिनिधि थे. आरोप है कि उन्होंने हल्दिया से बिटुमेन उठाया, लेकिन उसे कोलकाता में बेच दिया और बिना माल दिए ही ट्रांसपोर्ट का पैसा भी ले लिया.

वहीं इस मामले में ट्रायल फेस कर सात आरोपितों को साक्ष्य के अभाव में बरी किया गया. सीबीआई कोर्ट ने केदार पासवान, गणपति रामनाथ, शीतल प्रसाद माथुर, तरुण कुमार गांगुली, रंजन प्रधान, शोभा सिन्हा और महेश चंद्र अग्रवाल को बरी किया. अदालत ने 24 जनवरी को 12 आरोपितों का बयान दर्ज किया था. 22 मार्च को दोनों पक्षों की अंतिम बहस पूरी होने के बाद फैसले की तारीख निर्धारित की गई थी. बता दें कि इस केस में 1997 में एफआईआर दर्ज की गई थी.

साल 1994 में पथ निर्माण विभाग के हजारीबाग डिविजन में सड़कों का निर्माण कार्य किया जाना था. इसके लिए हल्दिया ऑयल रिफाइनरी कोलकाता से अलकतरा आना था, जिसमें मंत्री के साथ इंजीनियरों ने कंपनी से सांठगांठ कर सरकार को करोड़ों का चूना लगाया. इस घोटाले की जांच सीबीआई को साल 1997 में सौंपी गई थी.

सीबीआई ने इस मामले में सात मई 1997 को एफआईआर दर्ज की थी. अलकतरा घोटाले को लेकर उस समय सीबीआई ने सात अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज कर जांच प्रारंभ की थी. केंद्रीय एजेंसी की जांच में सरकार को चूना लगाने के सबूत मिले. इसके आधार पर सीबीआई ने बिहार के तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री इलियास हुसैन सहित तीन दर्जन से अधिक लोक सेवकों व निजी व्यक्तियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की.

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