भोपाल.
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में एकात्म धाम प्रकल्प के लिए मध्यप्रदेश सरकार संकल्पित है। आगामी वर्षों में एकात्म धाम का निर्माण कार्य पूर्ण होगा। यह बात संस्कृति, पर्यटन और धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेंद्र भाव सिंह लोधी ने ओंकारेश्वर में एकात्म पर्व के भव्य शुभारंभ अवसर पर कही। राज्य मंत्री लोधी ने कहा कि पहले चरण में जगतगुरू आदि शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की गई है। दूसरे चरण में जगतगुरू आदि शंकराचार्य के जीवन दर्शन पर आधारित संग्रहालय और अद्वैत लोक का निर्माण कार्य किया जाएगा। तीसरे चरण में अद्वैत वेदांत दर्शन के अध्ययन, शोध एवं विस्तार के लिए आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान की स्थापना की जाएगी। यह अद्वैत वेदांत संस्थान का संदर्भ केंद्र होगा और अंतिम चरण में शंकर निलायम आवासीय परिसर का निर्माण किया जाएगा। राज्य मंत्री लोधी ने जगतगुरू आदि शंकराचार्य के पावन चरणों में और पुण्यभूमि ओंकारेश्वर को नमन किया।
ओंकारेश्वर में माँ नर्मदा के पवित्र तट पर आज 5 दिवसीय एकात्म पर्व का भव्य शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक अनुष्ठान और कलश यात्रा से हुई, जो पारंपरिक वाद्य यंत्रों और संकीर्तन के साथ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग और गुफा मंदिर के दर्शन के लिए पहुंची और फिर अभय घाट पर संपन्न हुई। यात्रा के समापन के बाद मांधाता पर्वत स्थित एकात्म धाम में उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया।
समग्र दिवस में अनेक संतों का दिव्य संगम रहा, जिनमें स्वामी विवेकानंद पुरी, माँ पूर्णप्रज्ञा, स्वामी वेदत्वानंद पुरी, स्वामी योग प्रताप सरस्वती, स्वामिनी सद्विद्यानंद सरस्वती, स्वामी शैलेंद्र सरस्वती प्रमुख रहे। “अद्वैतामृतम्” सत्र की श्रृंखला में ‘ओंकार’ विषय पर माँ पूर्णप्रज्ञा ने साधकों को संबोधित करते हुए कहा कि दार्शनिक सत्य की प्राप्ति के लिए गुरु की शरण अत्यंत आवश्यक है। इसी उद्देश्य से आदि शंकराचार्य ने सुदूर दक्षिण से ओंकार पर्वत तक की कठिन यात्रा की थी। माँ पूर्णप्रज्ञा ने आगे बताया कि चित्त की आसक्ति से निवृत्ति के बिना वैराग्य संभव नहीं है। आत्मा प्रत्यक्ष है और ब्रह्म परोक्ष प्रतीत होता है, लेकिन वास्तव में आत्मा ही चैतन्य स्वरूप है — यही अद्वैत वेदांत का सार है। अद्वैत का अर्थ किसी मत का तिरस्कार नहीं, बल्कि वैचारिक मतभेदों का शमन है।
ॐकार का अर्थ प्रत्येक जीव में अभिन्यता और सभी आकृतियों का परिष्कार है। मांडूक्य उपनिषद में इस गूढ़ रहस्य का सुंदर वर्णन मिलता है। ॐकार में लीन होकर ही प्रणव अवस्था प्राप्त की जा सकती है, क्योंकि एक व्यक्ति के चित्त की शांति सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रभावित करती है। यह दार्शनिक सत्य ही सनातन संस्कृति की मूल आत्मा है।
स्वामी विवेकानंद पुरी ने कहा कि यह भूमि आद्य शंकराचार्य की गुरु भूमि है, और यहाँ उनका पुनः प्रतिष्ठित होना अत्यंत गौरव और आनंद का विषय है। संवाद सत्रों के दौरान संतों ने देश-विदेश से आए प्रतिभागियों के जिज्ञासा समाधान के लिये शंकरदूत दीक्षा प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया।
परमार्थ साधक संघ के स्वामी प्रणव चैतन्य पुरी ने “अद्वैतामृतम्” सत्र में आचार्य शंकर के जीवन और दर्शन पर विस्तृत प्रकाश डाला, जिसमें उन्होंने आचार्य शंकर के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और वैश्विक एकात्मता में योगदान को रेखांकित किया। मार्कंडेय संन्यास आश्रम के स्वामी प्रवानंद सरस्वती ने मार्कंडेय संन्यास परंपरा के ऐतिहासिक संदर्भों पर प्रकाश डाला।
सुमधुर स्तोत्र गायन से झूम उठे श्रोता
एकात्म पर्व के प्रथम दिवस के समापन पर सुप्रसिद्ध स्तोत्र गायिका और प्रशिक्षक माधवी मधुकर झा द्वारा आचार्य शंकर रचित स्तोत्रों का मधुर गायन प्रस्तुत किया गया। उनके स्वर में कल्याण वृष्टि स्तोत्र, लिंगाष्टकम्, भज गोविंदम, अर्धनारीश्वर स्तोत्र आदि की प्रस्तुतियाँ हुईं, जिसने उपस्थित श्रोताओं को भक्ति में सराबोर कर दिया।
एकात्म पर्व के अंतर्गत अद्वैत लोक प्रदर्शनी, अद्वैत शारदा पुस्तक स्टॉल और वैदिक अनुष्ठान जैसी विविध गतिविधियाँ मांधाता पर्वत पर प्रतिदिन की जा रही हैं, जो सभी आगंतुकों के लिए अद्वैत वेदांत और सनातन संस्कृति का जीवंत अनुभव दे रही हैं। आज भी अद्वैत वेदांत पर आधारित संवाद सत्रों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन जारी रहेगा।