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कभी दिल्ली की सड़कों पर ट्राम की खटखट सुनाई देती थी, सौ साल पहले, जब सड़कों पर कारें गिनती की थीं

नई दिल्ली
दिल्ली की लाइफलाइन माने जाने वाली मेट्रो का सफर आपने जरूर किया होगा। आज दिल्ली मेट्रो की रफ्तार शहर की धड़कन है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज से 100 साल पहले भी इसी शहर पर एक 'मेट्रो'दौड़ती थी? जी हां हम बात कर रहे हैं ट्राम की। कभी दिल्ली की सड़कों पर ट्राम की खटखट सुनाई देती थी। सौ साल पहले, जब सड़कों पर कारें गिनती की थीं और मेट्रो का नामोनिशान नहीं था, तब दिल्ली में बिजली की ट्राम दौड़ती थी। यह न सिर्फ ट्रांसपोर्ट का साधन थी, बल्कि दिल्लीवालों की जिंदगी का हिस्सा थी। आज हम दिल्ली की इसी ट्राम की कहानी बता रहे हैं।

दिल्ली में कब शुरू हुई ट्राम सेवा?
ये बात है साल 1908 की जब दिल्ली ने अपनी पहली इलेक्ट्रिक ट्राम का स्वागत किया। यह वो दौर था जब अंग्रेजी हुकूमत भारत में अपनी जड़ें जमा रही थी। ट्राम की शुरुआत ने दिल्ली की सैर को आसान बना दिया। चांदनी चौक से लेकर जामा मस्जिद, खारी बावली से अजमेरी गेट तक, 15 किलोमीटर के ट्रैक पर 24 खुली गाड़ियां चलती थीं। ये ट्रामें न सिर्फ लोगों को जोड़ती थीं, बल्कि दिल्ली की संस्कृति को भी एक धागे में पिरोती थीं।

ट्राम से गई थी नेहरू की बारात
4 फरवरी 1916, वसंत पंचमी का दिन, पुरानी दिल्ली के बाजार सीताराम में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला कौल की शादी हुई। उस दिन ट्राम ने इतिहास रचा। बारात में शामिल कई मेहमान ट्राम में सवार होकर विवाह स्थल पहुंचे। सोचिए, उस दौर में ट्राम की खटखट के बीच बारातियों का उत्साह और दिल्ली की गलियों का रंग। यह नजारा अपने आप में एक कहानी बन गया। उस समय दिल्ली के मशहूर हकीम अजमल खान भी अपने घर बल्लीमारान जाने के लिए ट्राम का सहारा लेते थे।

कहां से कहां तक चलती थी ट्राम
उस वक्त ट्राम दिल्ली के प्रमुख इलाकों तक पहुंचती थी। चांदनी चौक, जामा मस्जिद, फतेहपुरी, लाल कुआं, चावड़ी बाजार, सिविल लाइंस और सब्जी मंडी जैसे इलाकों को जोड़ने वाली ट्राम दिल्ली की लाइफलाइन थी। 1921 तक इसका विस्तार हुआ और यह 24 खुली गाड़ियों के साथ रोजाना हजारों लोगों को ढोती थी। उस समय दिल्ली की आबादी आज की तरह फैली नहीं थी और पुरानी दिल्ली ही शहर का केंद्र थी। ट्राम की धीमी रफ्तार और घंटियों की आवाज लोगों के लिए एक परिचित मेलोडी थी।

ऐसे लगा ट्राम की रफ्तार पर ब्रेक
आजादी के बाद, जब बसें और अन्य आधुनिक परिवहन साधन दिल्ली की सड़कों पर उतरे, ट्राम की चमक धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी। 1960 में दिल्ली ने अपनी ट्राम को अलविदा कह दिया। लेकिन ट्राम की यादें आज भी दिल्ली के इतिहास में बसी हैं। लेखिका निर्मला जैन ने अपनी किताब दिल्ली शहर दर शहर में लिखा कि आजादी के कई साल बाद तक चांदनी चौक के दोनों सिरों को जोड़ने वाली ट्राम की आवाज गूंजती थी।

ट्राम की विरासत अब दिल्ली की यादों का हिस्सा
ट्राम भले ही दिल्ली की सड़कों से गायब हो गई, लेकिन इसकी कहानी आज भी जीवित है। प्रसिद्ध सरोद वादक अमजद अली खान ने अपने बचपन की यादों में बताया कि 1957 में जब वे दिल्ली आए, तब ट्राम पुरानी दिल्ली की शान थी। आज भले ही मेट्रो ने ट्राम की जगह ले ली हो, लेकिन उस दौर की सादगी और ट्राम की खटखट आज भी पुरानी दिल्ली की गलियों में कहीं न कहीं गूंजती सी लगती है। दिल्ली की ट्राम सिर्फ एक परिवहन का साधन नहीं थी, यह एक दौर था, एक कहानी थी, जो नेहरू की बारात से लेकर चांदनी चौक की चहल-पहल तक, दिल्ली के इतिहास का हिस्सा बनी। क्या आपने कभी सोचा कि अगर आज ट्राम वापस लौटे, तो दिल्ली की गलियों में कैसी लगेगी?

 

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