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‘….जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूं नहीं देते!

‘….जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूं नहीं देते!
  • ‘आग़ाज़ -2024’ में सजी ग़ज़लों की यादगार महफिल
  • डॉ. शालिनी वेद ने प्रस्तुत किये चुनींदा शायरों के क़लाम
  • गुम होती ग़ज़ल गायकी को ‘आग़ाज़’ से मिला प्रोत्साहन
  • रागों पर आधारित ग़ज़लें व्याख्या के साथ प्रस्तुत की गईं

TIL Desk कानपुर:👉 जब प्यार नहीं है तो भुला क्यूं नहीं देते’। हसरत जयपुरी के इस कलाम को जब मशहूर ठुमरी व ग़ज़ल गायिका डॉ. शालिनी वेद त्रिपाठी ने अपने अंदाज में प्रस्तुत किया तो खचाखच भरा प्रेक्षागार श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। यह मौका था नव वर्ष के आगमन पर ‘आग़ाज़ -2024’ के आयोजन का, जिसमें चुनिंदा मशहूर शायरों के क़लामों को विभिन्न रागों के साथ प्रस्तुत किया गया। ‘शालिनी स्कूल एंड कल्चरल सोसाइटी‘ के बैनर तले गुम होती जा रही गज़ल गायिकी को प्रोत्साहित करने के लिये इस खास गज़ल गायिकी का कार्यक्रम ‘आग़ाज-2024़’ का आयोजन आज यूनाइटेड पब्लिक स्कूल के ऑडिटोरियम में किया गया था।

हसरत जयपुरी के कलाम के बाद डॉ. शालिनी ने जगदीश प्रकाश की लिखी सूफ़ी ग़ज़ल दीवाना बन दीवाना कर…. सुनाई। इसके बाद बशीर बदर का कलाम …कभी यूं भी आ मेरी आँख में, शकील बदायूंनी की …मेरे हमनफ़स मेरे हमनवा, जगदीश प्रकाश का कलमा …इश्क बस हो गया देखते देखते, जौन एलिया का कलाम …बेकरारी सी बेकरारी है, ख़ुमार बाराबंकवी का कलाम …एक पल में एक सदी का मजा हमसे पूछिये, फारुक जायसी की कलाम …अपनी हस्ती को हमी राख बनाये हुये हैं, साहिर लुधियानवी का क़लाम…तुम मुझे भूल भी जाओ और फ़ैज़ का कलाम ….मेरा दर्द नग़मा-ए-बेसेदा आदि ग़ज़लें पेश कर श्रोताओं को उनकी सीट से बांधे रखा।

महानगर में यह अपने तरह का अलग ग़ज़ल का कार्यक्रम था। ‘आग़ाज़़’ के आयोजन का मुख्य उद्देश्य युवा पीढ़ी को गीत-संगीत की मुख्य धारा से जोड़ना और पीछे होती जा रही ग़ज़ल गायकी को प्रोत्साहित करना था। तकरीबन दो घंटे के प्रोगाम ‘आग़ाज़़’ में ख्यातिप्राप्त शायरों के क़लाम ख्यातिप्राप्त ग़ज़ल व ठुमरी गायिका डॉ. शालिनी वेद त्रिपाठी ने प्रस्तुत किये। उनके अलावा एक नये उभरते स्थानीय गायक मोहित को भी मंच प्रदान किया जा रहा है।

डॉ. शालिनी ने कहा कि वर्तमान में गज़ले बहुत कम सुनी जा रही हैं, बहुत कम गाई जा रही हैं। गज़लों को अपने पुराने कल्चर में लौटाने का यह एक प्रयास है। ‘आग़ाज़’ में ज्यादातर ग़ज़लें रागों में औार उनकी व्याख्या बताते हुये गाया गया। गायकी के दौरान श्रोताओं को इस जानकारी से अवगत कराया कि ग़ज़ल किस किस राग पर आधारित है। इस तरह से यह एक एजूकेशनल प्रोगाम भी रहा। तबले पर डॉ. निशांत, सारंगी पर ज़ीशान खान, हारमोनियम पर राजकुमार सिंह, कीबोड सिंथेजाइज़र पर ऋषिराज और पैड पर रोशन ने बखूबी संगत की। इस मौके पर डॉ. वेद प्रकाश त्रिपाठी, डॉ रीता वर्मा व प्रो. डॉ. इन्द्र मोहन रोहतगी मौजूद थे। कार्यक्रम का सफल संचालन रुपीना मिश्रा ने किया।

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