* शनि ग्रह और उससे होने वाले रोग (बीमारियां) एवं उपाय *
www.rashisanyog.com- मेष राशि सिर में, वृष मुँह में, मिथुन छाती में, कर्क ह्रदय में, सिंह पेट में, कन्या कमर में, तुला पेड़ू में, वृश्चिक लिंग में, धनु जाँघों में, मकर घुटनो में, कुम्भ पिंडली में और मीन राशि को पैरों में स्थान दिया है | राशियों के अनुसार ही नक्षत्रों को उन अंगों में स्थापित करने से ” कल्पिम ” मानव शरीर के किसी अंग विशेष में रोग या कष्ट का पूर्वानुमान किया जा सकता है |
शनि एक तमो गुणी, क्रूर एवं दयाहीन, लम्बे नाखून व् रूखे-सूखे बालों वाला अधोमुखी, मंद गति से चलने वाला आलसी ग्रह माना गया है | इसका आकर दुर्बल, आँखें अंदर की और धंसी हुई | जहाँ हम सुख का कारण वृहस्पति ग्रह को मानते है तो हम शनि को दुःख का कारण मानते है |
शनि एक पृथकता कारक ग्रह है | पृथकता कारक ग्रह होने की वजह से ही जातक की जन्म-कुंडली में शनि जिस राशि एवं जिस नक्षत्र से संबंध होता है जातक को उस अंग में बीमारी के लक्षण प्रकट होने लगते हैं | शनि ग्रह को स्नायु और वात (Wind Energy) कारक ग्रह मानते है | नसों में वात का संचरण शनि ग्रह के द्वारा ही संचालित होता है |
मानव शरीर में 206 हड्डी होती है | 6 हड्डी वृहस्पति ग्रह की होती है जो कान का संचालन करती है | 32 हड्डी सूर्य ग्रह की होती है जो हमारे शरीर में रीढ़ का संचालन करती है | 168 हड्डी शनि ग्रह की होती है जो हमारे समस्त शरीर में पायी जाती है | कफ, पित्त, मल और धातु सभी निष्क्रिय है | यह स्वयं गति नहीं कर सकते, शरीर में विद्ममान वायु ही इन्हें इधर से उधर ले जा सकती है | जैसे बादल को वायु ले जाती है | यदि आयुर्वेद के दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो वात ही सभी कार्य संपन्न करता है |
शरीर के अशुभ होने पर मानव शरीर में वायु का क्रम टूट जाता है | अशुभ शनि जिस राशि नक्षत्र को पीड़ित करेगा उसी अंग में वायु का संचार अनियंत्रित हो जाएगा जिससे शरीर में अनेक रोग जन्म ले सकते है |
————-उपाय———-
ॐ करतार सर्व दु:खानाम् दुष्टनाम् भय वर्धनम् |
मृत्युंजय महाकालम् नमस्यामि शनैश्चरम् ||
(इस मन्त्र का जाप करने से शनि ग्रह से होने वाले दुखों और कष्टों का नाश होता है इसे प्रति दिन कम से कम 108 बार पढ़े)
————-उपाय———(शेष अगले लेख में)
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