TIL Desk #Election/ “काम बोलता है” और “सबका साथ सबका विकास” जैसे नारों से शुरू हुआ चुनावी महाभारत का रथ चौथे द्वार तक पहुँचते पहुँचते गधा पुराण का राग अलापने लगा | दूसरे चरण से ही यह तय हो गया था मानो ये यू पी का रण नहीं बल्कि धर्म व् सम्प्रदायों के बीच नफरत की खायीं खोंजने का हथियार बन गया हो | वोटों की खींचतान सांप्रदायिक रूप लेती दिखीं | प्रचार सभाओं में विकास की बातें कोसो पीछे छूट गयी | और लोग ‘कब्रिस्तान’ और ‘शमशान घाट’ की राजनीति करने लगे | इसके बाद हिंदुस्तानियों को ‘कसाब’ का पाठ पढ़ाया गया | विकास की राह टाक रहा मतदाता यह देखकर हतप्रभ है कि अपने सर्वोच्च पदों कि गरिमा त्यागकर नेता कितने ख़ौफ़नाख बयान दे रहें हैं | मानों देश व् प्रदेश कि जनता उनके हाथ का ख़िलौना हो | इतना ही नहीं मुट्ठी भर अपने लोगों को सभाओं में आगे खड़ा कर भीड़ से जबरियां तालियां बजवाई जाती हैं व् जयकारें लगवाये जाते हैं | इस धर्मांधता में नेता ये भी भूल जाते हैं कि हमारा वोटर अब वह पुराना “बेचारा” नहीं रह गया | न ही उनके बहकावे में आने वाली पीढ़ी सामने हैं | बल्कि विकास कि ललक से भरे नौजवान ख़ामोशी से अपने वोट कि चोट कर रहें हैं | आधी आबादी वाली महिलायें चाहे वे आधुनिका हो या घूंघट वाली वे ही डंके कि चोट पर लाइन लगाकर मतदान कर रही हैं |
मायावती ने तो शुरू से ही मुस्लिम कार्ड ख़ेल कर ‘दलित-मुस्लिम’ गठजोड़ की डुगडुगी बजा दी थी | अब इसमें बिख़राव हो जाए इसके लिए देश के ज़िम्मेदार नेताओं ने कब्रिस्तान व् शमशान तथा कसाब की बात उठा कर वोटों का ध्रुवीकरण कराने का संकेत देना शुरू कर दिया | इस बीच अखिलेश यादव भी न जाने किस धुन में गधों के विज्ञापन का जुमला कस गए | बस फ़िर क्या था | तुरंत गधों पर रिसर्च शुरू हुई और ठीक चौथे चरण के मतदान वाले दिन पी एम् मोदी ने गधा पुराण अलापना शुरू कर दिया | बहराइच की सभा में बोलें “गधा हमें प्रेरणा देता हैं | गधे चूना और चीनी ढोने में भेद नहीं करते | ये रंग देखकर वफादारी नहीं करते | मोदी ने कहा कि अगर किसी कि भैंस खो जाए तो यू पी सरकार उसे खोंजने निकल पड़ती हैं | गधा कितना भी बीमार व् थक हो मालिक का काम पूरा करता हैं | विकास के मुद्दे सुनने आये लोग यह पुराण सुन अपना माथा ठोकने लगे | वहीँ अखिलेश ने भी तंज कसा अरे मोदी जी तो गधे कि बात पर इमोशनल हो गए |
अब एक और नया ट्रेन्ड अपनाया जा रहा हैं सभाओं में लगता हैं पाठशालाएँ खोल दी गयी हों | जनता के बीच सैकड़ों पार्टी वर्कर घुसे रहते हैं | मंच से नेता जी पूंछते हैं ‘कसाब ‘ का मतलब जानते हों ? ‘क’ से कांग्रेस, ‘स’ से समाजवादी, व् ‘ब’ से बहुजन समाज पार्टी यही हैं “कसाब”| यानी यही हैं पाक आतंकवादी जिसे बाद में फांसी दी गयी | ऐसे अनेकों संवाद होते हैं और नेता जी के कार्यकर्ता जनता से हुंकारा भरवाते हैं | पर वोटर जुमलेबाजी को तरजीह देता हैं या विकास को यह तो ग्यारह मार्च को उसका फैसला ही बताएगा |
सुधीर निगम
रेजिडेंट एडिटर