श्राद्ध पक्ष, जिसे पितृ पक्ष के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में 16 दिनों की अत्यंत धार्मिक महत्व की अवधि है। इस दौरान, लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और उन्हें सम्मान देने के लिए पितृ पूजा और पिंड दान जैसे अनुष्ठान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि ये गतिविधियां पितृ दोष को कम करने और पूर्वजों को मोक्ष दिलाने में मदद करती हैं। श्राद्ध पक्ष के दौरान कुछ ऐसे कार्य हैं जिन्हें अशुभ माना जाता है, जैसे नए कपड़े या जूते खरीदना, शुभ कार्यक्रम आयोजित करना, शराब पीना और प्रमुख मंदिरों में जाना।
श्राद्ध पक्ष:पितृ पक्ष का बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। ये 16 लंबे दिन सबसे शुभ दिन माने जाते हैं। इन दिनों में लोग अपने पूर्वजों और पितरों की पूजा और तर्पण करते हैं। पितृ पक्ष को आम बोलचाल की भाषा में श्राद्ध पक्ष के नाम से जाना जाता है। इस साल श्राद्ध पक्ष 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर 2023 तक रहेंगे | श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों की तिथि पर श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने की परंपरा है| इस समय पूर्वजों के प्रति सम्मान दिखाया जाता है|
इसलिए श्राद्ध करना है जरूरी
पितृ या पूर्वज ही हमें जीवन में आई विपरीत परिस्थितियों से उबारने में मदद करते हैं। उनकी यह मदद प्रज्ञा यानि इंट्यूशन के माध्यम से हम तक पहुंचती है। भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक का पक्ष ‘महालय’ श्राद्ध पक्ष कहलाता है। इस पक्ष में व्यक्ति की जिस तिथि को मृत्यु हुई है उस तिथि के दिन उस मृत व्यक्ति के पुत्र-पौत्रदि द्वारा उसका श्राद्ध किया जाता है। इस श्राद्धभोज में पितरों को कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है। ऐसा करने से पितर संतुष्ट होकर अपने परिजनों को दीर्घायु, आरोग्य, धन-संपत्ति, स्वर्ग प्राप्ति जैसे सभी सुख प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। शास्त्र कहते हैं कि ‘पुन्नाम नरकात् त्रायते इति पुत्रः अर्थात- जो नरक से त्राण ( रक्षा ) करता है वही पुत्र है। श्राद्ध कर्म के द्वारा ही पुत्र जीवन में पितृ ऋण से मुक्त हो सकता है। जो लोग श्राद्ध कार्य इस शंका से नहीं करते कि ‘कौन हैं पितर और कहां हैं’ इस शंका का समाधान करते हुए मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं कि ‘पितृ सूक्ष्म स्वरुप में श्राद्ध तिथि को अपनी संतान के घर के द्वार पर सूर्योदय से ही आकर बैठ जाते हैं,इस उम्मीद में कि उनके पुत्र-पौत्र भोजन से उन्हें तृप्त क़र देंगे। किन्तु सूर्यास्त होने तक भी पितरों को जब भोजन प्राप्त नहीं होता है तो वे निराश व रुष्ट होकर श्राप देते हुए अपने पितृलोक लौट जाते है।इसीलिए शास्त्रों में श्राद्ध करने की अनिवार्यता कही गई है।
जीव मोहवश इस जीवन में पाप-पुण्य दोनों कृत्य करता है। पुण्य का फल स्वर्ग है और पाप का नरक। नरक में पापी को घोर यातनाएं भोगनी पड़ती हैं और स्वर्ग में जीव सानंद रहता है। जन्म-जन्मांतर में अपने किये हुए शुभ-अशुभ कर्मफल के अनुसार स्वर्ग-नरक का सुख भोगने के पश्चात जीवात्मा पुनः चौरासी लाख योनियों की यात्रा पर निकल पडती है। अतः पुत्र-पौत्रादि का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने माता-पिता तथा पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक ऐसे शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक अथवा अन्य लोक में भी सुख प्राप्त हो सके।
देवताओं से पहले पितर
देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता हैं। शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्मविपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।
सौभाग्य लेकर आता है श्राद्ध पक्ष
माना जाता है कि पितरों का पिंडदान करने वाला परिवार दीर्घायु पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन और धन-धान्य की प्राप्ति करता है. यही नहीं पितरों की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि, सौभाग्य, राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. वर्ष में एक बार आने वाला श्राद्ध पक्ष हमारे लिए सौभाग्य लेकर आता है, इसलिए इसका स्वागत-सत्कार करना चाहिए.