मणिपुर डेस्क/ मणिपुर में पिछले 15 सालों से कांग्रेस की सरकार मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी के नेतृत्व चल रही हैं। इस बार भी होने वाले विधानसभा चुनावो में कांग्रेस विकास के मुद्दे को लेकर मैदान में उतरने जा रही है। वही भाजपा भ्रष्टाचार मुक्त और सुशासन के वादे के साथ चुनावी मैदान में कूद गयी है और मणिपुर में एक पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दावा कर रही हैं।
भाजपा नेताओ का कहना है कि पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच ग़लतफ़हमी को दूर करना भी उनकी पार्टी का प्रमुख काम होगा। मणिपुर की कुल 60 विधानसभा सीटों में 20 सीट पहाड़ी इलाकों में है और 40 सीट घाटी में। पहाड़ों में बसे नगा लोगों के विरोध की वजह यह भी रही है कि राज्य प्रशासन और प्रदेश की राजनीति में हमेशा मेतई समुदाय का ही नेतृत्व रहा है। और मणिपुर की करीब 31 लाख जनसंख्या में 63 प्रतिशत के आसपास मेतई लोगो की जनसँख्या है।
कांग्रेस के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह भी मेतई समुदाय से ही आते है। जिसके चलते सभी पार्टियों को सरकार बनाने के लिए मेतई बहुल घाटी की सीटों पर ही फोकस करना पड़ता हैं। लेकिन हर बार की तरह इस बार कांग्रेस के लिए मणिपुर की सत्ता का रास्ता आसान नहीं है उसे इस बार भाजपा से सीधी लड़ाई लड़नी है | मणिपुर में 4 और 8 मार्च को दो चरणों में मतदान होने हैं। बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का पूरा ध्यान भले ही यूपी चुनाव पर है, लेकिन मणिपुर की जीत भी पार्टी के लिए काफी अहम हैं।