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ब्रेकथ्रू का सर्वे: किशोर-किशोरियों के साथ हिंसा समुदाय को नहीं स्वीकार

किशोर-किशोरियों के साथ हिंसा समुदाय को नहीं स्वीकार- ब्रेकथ्रू का सर्वे

TIL Desk Lucknow/ किशोर-किशोरियों के साथ हिंसा को लेकर अब समुदाय आवाज उठाने लगा है, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को सभी के लिए अस्वीकार बनाने के लिए काम करने वाली स्वंयसेवी संस्था ब्रेकथ्रू के सर्वे में यह सामने आया है कि 21 फीसदी लोगों को किशोर-किशोरियों या किसी भी लिंग के साथ हिंसा अब स्वीकार नहीं है वह अब खुलकर हिंसा के मुद्दे पर बात करने लगे हैं। यह ताजा आकड़ें ब्रेकथ्रू के किशोर-किशोरी सशक्तिकरण कार्यक्रम ‘दे ताली’ के इंडलाइन सर्वे से आए हैं।

ब्रेकथ्रू का कार्यक्रम अब देश के 6 राज्यों में

इस अवसर पर ब्रेकथ्रू की राज्य प्रमुख कृति प्रकाश ने कहा कि सर्वे के परिणामों से हम बहुत उत्साहित है,हमें खुशी है कि हम इस कार्यक्रम के माध्यम से किशोर-किशोरियों के जीवन में बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य का वातावरण बना पाए वहीं उनके साथ होने वाली लिंग आधारित भेदभाव व हिंसा जैसे मुद्दे पर एक प्रभावी संवाद शुरू कर पाए। महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा को समाप्त करने अपनी मुहिम को जारी रखते हुए ब्रेकथ्रू किशोर-किशोरियों के साथ अपने कार्यक्रम को अब पंजाब लेकर जा रहा है। वहां पर हम पंजाब सरकार के साथ मिलकर किशोर-किशोरियों के साथ जेंडर के मुद्दे पर काम शुरू कर रहे है।

उत्तर प्रदेश के 6 जिलों में हुआ सर्वे, 11-22 आयुवर्ग के किशोर-किशोरियों के साथ हुआ सर्वे

उत्तर प्रदेश के 6 जिलों लखनऊ, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, जौनपुर और गाजीपुर में 11-22 आयुवर्ग के किशोर-किशोरियों के साथ किया गया। इसके आंकड़ों का साझा करते हुए ब्रेकथ्रू की स्टेड लीड (उत्तर प्रदेश ) कृति प्रकाश ने बताया कि 2015 में इन जिलों में हम लोगों ने किशोर-किशोरियों के शिक्षा, स्वास्थ्य, लिंग आधारित भेदभाव जैसे मुद्दों पर काम करना शुरू किया था। जिसके सुखद परिणाम हमारी इंडलाइन सर्वे में देखने को मिले है।

किशोरियों की मोबिलिटी बढ़ी, पढ़ाई हो या काम- घर से बाहर निकलना हुआ आसान

उन्होंने ने बताया कि किशोर-किशोरियों के स्कूल व काम आदि के लिए बाहर ( मोबिलिटी) निकलने की दर में भी इजाफा हुआ है। लड़कियों में यह वृद्धि दर 37 फीसदी देखी गई वहीं लड़को में 8 फीसदी रही। साथ ही किशोर-किशोरियों में खाली समय ( आराम का समय) में भी 40 फीसदी का इजाफा देखा गया। खास तौर से लड़कियों के लिए यह समय जो पहले 2.97 घंटा था वो अब बढ़ कर 4.16 घंटा हो गया।

पीढ़ियों के बीच खुलकर होने लगी बात, माता-पिता भी समझने लगे अपने बच्चों की बात।

अब किशोर-किशोरियों की शिक्षा का मुद्दा हो उनके साथ लिंग आधारित भेदभाव, हिंसा व स्वास्थ्य आदि का मुद्दा हर जगह हमने देखा कि यह सब उनकी कंडीशनिंग का हिस्सा है, जो एक कल्चर के रूप में उनके जीवन का हिस्सा बन कर रूढीवादी मान्यताओं को बढ़ावा भी देता है इसलिए हमने अपनी रणनीति में इन मान्यताओं को बदलकर किशोर-किशोरियों के हित में करने की रणनीति बनाई। हमारा टीकेटी पाठ्क्रम हो समुदाय आधारित कार्यक्रम सभी में रूढीवादी मान्यताओं को चिन्हित करके उसमे बदलाव लाने का प्रयास शुरू किया गया, जिसके उत्साहजनक परिणाम आप सभी के सामने हैं।

उन्होंने आगे कहा कि हमने जब काम शुरू किया था तब हमने देखा कि किशोर-किशोरियों की अपने माता-पिता अन्य बड़े-बुजुर्गों से बातचीत बहुत कम होती थी, वह अपनी बातें उनसे नहीं कह पाते थे, ब्रेकथ्रू ने इस कल्चर को बदलने की सोची और उनके बीच के संवाद का एक ब्रिज तैयार किया। जिसका असर ये हुआ कि इंटरजेंडर कम्युनिकेशन में 100 फीसदी से अधिक का इजाफा हुआ। जो बेसलाइन के 33 फीसदी से बढ़कर 69 फीसदी हो गया है। साथ ही किशोर-किशोरियों में अपनी आवश्यकताओं व जरूरतों को लेकर परिजनों से जो बातचीत में भी 25 फीसदी का इजाफा देखा गया।

किशोर-किशोरियों में स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता बढ़ी

किशोर-किशोरियों में स्वास्थ्य केंद्रो जाने की दर में भी 10 फीसदी का इजाफा हुआ। जो पहले 44 था जो बढ़कर 54 प्रतिशत हो गया। वहीं किसी भी तरह से स्वाथ्य केंद्रों पर जाकर या बिना जाए भी स्वास्थ्य सेवाओं के लाभ लेने की दर भी बेसलाइन सर्वे के 18 फीसदी से बढ़कर 56 फीसदी हो गया।

शिक्षा के लिए स्कूल में समय बिताने की दर में भी इजाफा

शिक्षा के लिए स्कूल में औसत वर्ष बिताने की दर में भी इजाफा देखा गया, बेसलाइन की अपेक्षा लड़को में 5 फीसदी और लड़कियों में 4 फीसदी बढोत्तरी देखी गई। इस अवसर पर ब्रेकथ्रू के कैंपेन ‘दख़ल दो’ के बारे में भी जानकारी दी गई, यह कैंपेन महिलाओं और लड़कियों के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए बायस्टेंडर को दख़ल देने के लिए प्रेरित करता है। अभिनेता राजकुमार राव ‘दख़ल दो’ कैंपेन के ब्रांड एंबेजडर हैं।

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