#Election Live मियाद ख़त्म होने के आख़िरी दिन अंततः मुलायम सिंह यादव चुनाव आयोग जाकर साईकिल पर दावा ठोक ही आये | रामगोपाल यादव दो दिन पहले ही अखिलेश का पक्ष लेकर चार लाख से ज़्यादा पन्नों के दस्तावेज़ी सबूत आयोग को दे चुकें हैं | अब पूरे देश की निगाहें निर्वाचन आयोग के फ़ैसले पर टिक गयीं हैं, कि आख़िर “साइकिल” किसकी होगी | आयोग को भी 17 जनवरी से पहले अपना फ़ैसला सुनाना होगा, क्यूँ कि यू0 पी0 चुनाव के पहले चरण के चुनावी नामांकन उसी दिन शुरू होना हैं | हालांकि समाजवादी संग्राम के दिनों से अब तक कई दौर की बैठकें चलीं| मान मन्नौवल भी हुआ पर नतीजा वहीँ ढाक के तीन पात | न मुलायम पसीजे न अखिलेश माने | यद्यपि सपा की स्थापना दिनों के साथी आज़म खान जैसे लोग अपना धैर्य नहीं खो रहे हैं | उनका कहना यही हैं “धुंध हैं पर अँधेरा नहीं छाया” | लखनऊ से लेकर दिल्ली तक की दौड़, दोनों पक्षो का अपने-अपने दावे आयोग को सौंपना तक तो समझ आता हैं, लेकिन मुलायम सिंह जैसे नेता रामगोपाल द्वारा भेजे गए कागज़ लेने से इनकार क्यों कर रहें हैं? यह एक यक्ष प्रश्न बन खड़ा हुआ हैं |
सोमवार को भी आयोग के दफ़्तर में जब मुलायम को अखिलेश गुट के दस्तावेज़ो की कॉपी दी जाने लगी तो उन्होंने इसे लेने से इंकार कर दिया | इस पर उन्होंने अमर सिंह की भी बात नहीं मानी | अब राजनीति के धुरंधर इस मायने का अर्थ समझने लग गए हैं कि मुलायम सिंह का यह “मायाजाल” क्या हैं? एक तरफ तो वे अखिलेश को सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वीकारनें को तैयार नहीं, इसके ख़िलाफ़ चुनाव आयोग कि ड्योढ़ी में दस्तक देकर साइकिल के लिए अपना हक़ भी जाता आये | पर वे वह सारे कागज़ात क्यों नहीं देखना चाहते जिनके बूते उनके ही पुत्र ने बग़ावत कर स्वयं ही पिता कि विरासत संभाल ली हैं |
पहले के कयासों कि तरह मुलायम का यह दाँव भी किसी ड्रामे कि स्क्रिप्ट तो नहीं, यह जानने-समझने में लोग दिमाग़ी कसरत कर रहें हैं | साइकिल किस गुट को मिलेगी या फ्रीज़ होगी | जानने के लिए अभी सात-आठ दिन और माथा पच्ची करना पड़ सकती हैं |
सुधीर निगम
रेजिडेंट एडिटर
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