भोपाल
मध्य प्रदेश की दिवंगत कांग्रेस नेत्री सरला मिश्रा की 1997 में हुई संदिग्ध मौत के मामले में भोपाल की एक अदालत ने नए सिरे से जांच के आदेश दिए हैं. न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पलक राय ने पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को अधूरा बताते हुए टीटी नगर पुलिस को मामले की दोबारा जांच करने का निर्देश दिया. इस फैसले से सरला मिश्रा के परिवार को 28 साल बाद न्याय की उम्मीद जगी है.
14 फरवरी 1997 को सरला मिश्रा भोपाल के साउथ टीटी नगर स्थित अपने सरकारी आवास में गंभीर रूप से जली हुई अवस्था में पाई गई थीं. 5 दिन बाद यानी 19 फरवरी को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. पुलिस ने इस मामले को आत्महत्या करार देते हुए साल 2000 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी. हालांकि, सरला के भाई अनुराग मिश्रा ने इस रिपोर्ट को चुनौती दी और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया. हाईकोर्ट के निर्देश पर भोपाल जिला अदालत ने मामले की फिर से जांच का आदेश दिया.
अनुराग मिश्रा ने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में कहा, "यह मामला पहली बार अदालत में आया और हमारे तर्कों को स्वीकार किया गया. पुलिस ने इस मामले को दबाने की कोशिश की और इसे आत्महत्या के रूप में पेश किया. हम अदालत के फैसले से बहुत संतुष्ट हैं." उन्होंने दावा किया, "मेरी बहन ने आत्महत्या नहीं की, उसकी हत्या की गई थी. मुझे पूरा विश्वास है कि अब न्याय मिलेगा."
प्रारंभिक जांच में पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया था और केस बंद करने के लिए कोर्ट में आवेदन किया था। वहीं, सरला मिश्रा के भाई ने कोर्ट में इसे हत्या बताते हुए तत्कालीन दिग्विजय सरकार पर मामले को दबाने का आरोप लगाया था। परिजन के आपत्ति दर्ज करने के बाद 16 अप्रैल को कोर्ट ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि कोर्ट ने जिन बिंदुओं को लेकर जांच के आदेश दिए हैं, क्या उन बिंदुओं की नए सिरे से जांच की जा सकती है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए फॉरेंसिक साइंस और हैंडराइटिंग एक्सपर्ट्स के अलावा कानून के जानकारों से बात की।
अनुराग ने पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करने के अदालत के फैसले को गड़बड़ी का सबूत बताया. उन्होंने कहा कि 90% जली हुई अवस्था में कोई व्यक्ति मृत्यु पूर्व बयान या हस्ताक्षर कैसे दे सकता है, जैसा कि पुलिस ने दावा किया था.
इस मामले ने उस समय राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था, क्योंकि 1997 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे. अनुराग मिश्रा ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह पर हत्या के आरोप लगाए हैं, जिसे उन्होंने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से जोड़ा.
बुधवार के अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए दिग्विजय सिंह ने कहा, "जितनी जांच करनी है, करा लें. मैं हर जांच का स्वागत करता हूं." उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भाजपा सरकार के दौरान सीबीआई ने भी इस मामले की जांच की थी.
सरकार से लगाई गुहार
अनुराग मिश्रा ने वर्तमान सरकार से मांग की है कि इस पूरे मामले की जांच कराई जाए और जो सफेद पोश लोग हैं, उनके नाम भी सामने आने चाहिए. कोर्ट में दोबारा सरला के मौत की फाइल दोबारा खुलने से उनके परिवार को राहत मिली है और उन्हें न्याय की आशा जगी है.