सागर
सागर . डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय में में जल्द ही एक बड़ा दीक्षांत समारोह होने वाला है। इस बार का कन्वोकेशन खास होगा क्योंकि इसमें जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य महाराज को मानद उपाधि से सम्मानित किया जाएगा ।विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. नीलिमा गुप्ता ने इसके लिए राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अनुमति मांगी। राष्ट्रपति से अनुमति मिलने के बाद अब मई माह में दीक्षांत समारोह आयोजित करने की तैयारी चल रही है। इसके साथ ही केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से भी समारोह में शामिल होने की अनुमति मांगी गई है। मई के दूसरे सप्ताह में तारीख का ऐलान विवि प्रबंधन करेगा।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने 80 ग्रंथों की रचना
जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज जब दो महीने के थे, तब उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। इसके बावजूद उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल कीं, वे अद्वितीय हैं। वे शिक्षाविद, बहुभाषाविद, कथाकार और प्रवचनकर्ता के रूप में जाने जाते ह। स्वामी को 22 भाषाएं आती हैं और उन्होंने लगभग 80 ग्रंथों की रचना की है, जिनमें हिंदी और संस्कृत के चार महाकाव्य भी शामिल है। उन्हें 1988 में जगद्गुरु पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। उन्होंने विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना भी की है, जिसके वे आजीवन संस्थापक कुलाधिपति हैं। उन्हें 2015 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था।
तैयारियां चल रही हैं
विवि में दीक्षांत समारोह के आयोजन की तैयारी में चल रही है। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद अब अतिथियों की अनुमति मिलने का इंतजार है। मई के दूसरे सप्ताह में तारीख की घोषणा हो जाएगा। इस वर्ष आयोजन को अच्छा और बृहद बनाने का हम प्रयास कर रहे हैं। जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य महाराज को मानद उपाधि से सम्मानित करने की अनुमति हमें राष्ट्रपति से मिल गई है।
प्रो. नीलिमा गुप्ता, कुलपति, डॉ. हरिसिंह गौर विवि
उपाधि देने के फैसले का विरोध, प्रोफसर, शिक्षाविद सहित तमाम लोगों ने जताई आपत्ति.
डॉ. हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी अपने 33वें दीक्षांत समारोह में जगद्गुरु रामभद्राचार्य को डी. लिट की मानद उपाधि देने जा रही है. इसके लिए विश्वविद्यालय को राष्ट्रपति से भी मंजूरी मिल गई है. ये बात सामने आते ही फोरम ऑफ प्रोग्रेसिव एकेडेमिया के बैनर तले देश भर के शिक्षाविद, कानूनविद, पत्रकार, समाजसेवी, पूर्व छात्र और शोध छात्र विरोध में उतर आए हैं. वो जिला और विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष विरोध जता रहे हैं. उन्होंने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इस फैसले पर विरोध प्रकट किया है. उनका कहना है कि ये फैसला लोकतांत्रिक, सामाजिक न्याय और संवैधानिक नैतिकता के मूल्यों को कमजोर करता है. साथ ही वंचित समुदाय के लिए पीड़ादायक संदेश भी है.
रामभद्राचार्य पर लगा रहे हैं गंभीर आरोप
जगद्गुरु रामभद्राचार्य को दी जा रही डी. लिट की मानद उपाधि का विरोध करने वालों का तर्क है कि "रामभद्राचार्य विद्वान होने के साथ-साथ विवादास्पद भी हैं. उन्होंने कई बार अपने भाषण और वक्तव्यों में डाॅ. भीमराव अंबेडकर, बौद्ध धर्म और दलित समुदाय के विरुद्ध आपत्तिजनक और अपमानजनक टिप्पणियां की है. उनके बयान समाज में विभाजन पैदा करने वाले, जातिवादी और अपमानजनक होते हैं. ऐसे बयान हमारे संविधान के बंधुत्व, समानता और गरिमा के प्रतिकूल हैं."
सुप्रीम कोर्ट के वकील ने इस फैसले को बताया विवादास्पद
इसके अलावा उनका कहना है कि "इस यूनिवर्सिटी के संस्थापक डाॅ. हरीसिंह गौर प्रगतिशील सुधारक, विधि विशेषज्ञ और बौद्ध चेतना से युक्त व्यक्ति थे. जिन्होंने दलितों, महिलाओं और पिछड़ों के लिए संघर्ष किया और वैज्ञानिक सोच, लैंगिक समानता और सामाजिक उत्थान को अपने जीवन का आधार बनाया. ऐसे में यूनिवर्सिटी द्वारा ऐसे व्यक्ति को सम्मान देना, उनके मूल्यों के विपरीत, विडंबना पूर्ण और यूनिवर्सिटी की मूल आत्मा का अपमान है."
रामभद्राचार्य के बयानों को बताया नफरती
इस फैसले के विरोध में उतरे लोगों का कहना है कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य को मानद उपाधि देना छात्रों, विद्वानों, दलित संगठनों, समाजिक समूहों के साथ देश भर के शैक्षणिक संस्थानों में गहरे आक्रोश को जन्म देने वाला है. चारों तरफ प्रदर्शन, याचिकाएं और सार्वजनिक बयान जारी किए गए हैं, जो बताते हैं कि ये मानद उपाधि जातिगत पूर्वाग्रह और सामाजिक विभाग को वैधता प्रदान करती है.
उनका कहना है कि मानद उपाधियां ऐसे लोगों को दी जाती है जो ज्ञान, सेवा, मानव अधिकार और समावेशी प्रगति जैसे सार्वभौमिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसे व्यक्ति को सम्मान देना जिनके जातिवादी वक्तव्य सार्वजनिक हैं. विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गरिमा को नुकसान पहुंचाता है.
यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी विरोध में उतरे
गौर यूनिवर्सिटी के कई प्रोफेसर, शोध छात्र और छात्र इस फैसले के विरोध में हैं. यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर यूनिवर्सिटी की आचार संहिता का हवाला देते हुए नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत से कहते हैं कि "फोरम ऑफ प्रोग्रेसिव एकेडेमिया द्वारा शुरू की गई राष्ट्रव्यापी विरोध मुहिम को मैं एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और डॉ. गौर के बौद्धिक उत्तराधिकारी के नाते पूरी प्रबलता के साथ समर्थन करता हूं. यह निर्णय न केवल चिंताजनक है बल्कि शर्मनाक भी है. इसके पीछे विश्वविद्यालय प्रशासन की बौद्धिक दिवालियापन स्पष्ट रूप से दिखाई देता है." उन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि
• इस निर्णय को अविलंब निरस्त किया जाए.
• एक स्वतंत्र समिति द्वारा इस निर्णय की समीक्षा की जाए.
• भविष्य में मानद उपाधि प्रदान करने के लिए स्पष्ट, पारदर्शी और मूल्यों-आधारित नीति बनाई जाए.
उन्होंने कहा, "यदि विश्वविद्यालय प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई नहीं की तो हम इस विरोध को राष्ट्रव्यापी अकादमिक असहयोग आंदोलन तक ले जाने के लिए बाध्य होंगे. विश्वविद्यालयों को प्रतिगामी विचारधाराओं के प्रचारक नहीं बल्कि वैज्ञानिक, समावेशी और प्रगतिशील चेतना के केंद्र बनाना हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारी है."