TIL Desk लखनऊ: थायराइड कैंसर अन्य कैंसर की अपेक्षा बहुत कम देखने को मिलता है लेकिन वैश्विक स्तर पर यह एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चिंता का विषय है। भारत में थायराइड कैंसर की घटना प्रति लाख जनसंख्या पर 5.4 है। इस आंकड़े की वजह से इस मूक खतरे के बारे में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक हो जाता है। थायराइड कैंसर के कई उपप्रकार हैं, जिनमें पैपिलरी थायराइड कैंसर सबसे प्रचलित रूप है। सुस्त, धीमी गति से बढ़ने वाले ट्यूमर से लेकर उच्च मृत्यु दर वाले आक्रामक रूपों तक थायराइड कैंसर का क्लीनिकल बिहेवियर (नैदानिक व्यवहार) व्यापक रूप से अलग-अलग होता है। थायराइड कैंसर की बारीकियों और इसके प्रबंधन को समझना सही इलाज प्रदान करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
रीजेंसी हॉस्पिटल लखनऊ के मेडिकल ऑनकोलॉजिस्ट कंसलटेंट डॉ नीरज अग्रवाल ने थायराइड कैंसर से लड़ने के लिए जल्दी पहचान और जागरूकता के महत्व को समझाते हुए कहा, “थायराइड कैंसर किसी भी उम्र के महिला या पुरुष को हो सकता है, लेकिन कुछ जोखिम फैक्टर, जैसे लिंग, आयु, रेडियेशन एक्सपोजर, पारिवारिक इतिहास और खानपान संबंधी आदतें खतरे को बढ़ा सकती हैं। गर्दन की सूजन, आवाज में बदलाव, निगलने में कठिनाई, क्रोनिक खांसी या गर्दन में दर्द जैसे संभावित संकेतों और लक्षणों के बारे में सतर्क रहना, प्रारंभिक डायग्नोसिस और समय पर इलाज में मदद कर सकता है।”
थायराइड कैंसर विभिन्न उपप्रकारों में होता है। इन उपप्रकारों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। पैपिलरी थायराइड कैंसर सबसे प्रचलित प्रकार है। यह कैंसर आमतौर पर धीमी गति से बढ़ता है और अक्सर इसका प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है। फॉलिक्युलर थायरॉयड कैंसर 10 से 15% थायराइड केसों में योगदान देता है, यह हड्डियों और फेफड़ों में भी फैल सकता है।
मेडुलरी थायराइड कैंसर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होने वाला थायराइड कैंसर है। यह थायरॉयड C कोशिकाओं में उत्पन्न होता है। वहीं एनाप्लास्टिक थायरॉयड कैंसर बहुत ही दुर्लभ थायराइड कैंसर है, यह आक्रामक होता है और इसका इलाज मुश्किल होता है। इसके अलावा थायरॉयड लिम्फोमा भी थायरॉयड कैंसर का एक प्रकार है जो थायरॉयड के भीतर इम्यून सिस्टम कोशिकाओं में उत्पन्न होता है, यह भी बहुत दुर्लभ कैंसर है।
थायराइड कैंसर की रोकथाम के लिए लिंग, आयु, रेडियेशन जोखिम, पारिवारिक इतिहास, आयोडीन की कमी वाली डाइट और आनुवंशिक बीमारियों जैसे जोखिम फैक्टर के बारे में जागरूकता महत्वपूर्ण है। नियमित स्वास्थ्य जांच और संदिग्ध लक्षणों का तुरंत मेडिकल इवेल्यूएशन (चिकित्सा मूल्यांकन) इस प्रकार के कैंसर का जल्द पता लगाने और इलाज के परिणामों को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। दरअसल अधिकांश थायराइड कैंसर का पता नियमित जांच या अन्य बीमारियों के इलाज के दौरान संयोग से लगाया जाता है। इसलिए थायराइड कैंसर को मूक खतरा माना जाता है। थायराइड कैंसर का इलाज कैंसर के प्रकार और स्टेज के आधार पर भिन्न होता है। सामान्य इलाज के तौर पर सर्जरी होती है। सर्जरी में थायराइड ग्रंथि (कुल थायरॉयडेक्टॉमी या आंशिक थायरॉयडेक्टॉमी) को निकाला जाता है।
सर्जरी के बाद बची हुई कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए रेडियोएक्टिव आयोडीन थेरेपी (RAI) का इस्तेमाल किया जा सकता है। कुछ केस में बाहरी बीम रेडियेशन का उपयोग किया जा सकता है, खासकर जब सर्जरी नही करनी होती है तो यह विकल्प अमल में लाया जाता है। कीमोथेरेपी का इस्तेमाल आमतौर पर एनाप्लास्टिक थायरॉयड कैंसर के लिए किया जाता है।
इसके अलावा टारगेटेड ड्रग थेरेपी कैंसर कोशिकाओं के भीतर विशिष्ट असामान्यताओं को टारगेट करने के लिए नई दवाओं का उपयोग करके, उनकी वृद्धि और प्रसार को रोकने में मदद कर सकती है। थायराइड कैंसर से लड़ने के लिए डॉक्टरों, नीति निर्माताओं और समुदाय को शामिल करने वाले एक सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है।
सभी अध्ययनों में थायराइड कैंसर के लिए प्रोग्नोसिस सामान्य रूप से उत्कृष्ट होता है, जिसमें 5 वर्ष की कुल सर्वाइवल 95% से ज्यादा है। जागरूकता को बढ़ावा देने, रिसर्च पहलों का समर्थन करने और नियमित स्वास्थ्य जांच को बढ़ावा देने से इस मूक खतरे के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके अलावा इन उपायों से थायराइड कैंसर से प्रभावित व्यक्तियों के लिए परिणामों में सुधार करना संभव बनाया जा सकता है।