लखनऊ डेस्क/ उत्तर प्रदेश में दो सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं। 1,500 करोड़ रुपये के गोमती रिवरफ्रंट घोटाले की जांच कर रही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारियों आलोक रंजन और दीपक सिंघल की भूमिका की जांच पर राज्य सरकार की राय मांगी है।
जब घोटाला हुआ तब आलोक रंजन राज्य के मुख्य सचिव थे और सिंघल को प्रमुख सचिव, सिंचाई के रूप में तैनात किया गया था। बाद में वे मुख्य सचिव बने। सीबीआई सूत्रों ने कहा कि एजेंसी ने दो आईएएस अधिकारियों की भूमिका की जांच के लिए राज्य सरकार से राय मांगी है, जिसकी अभी तक जांच नहीं हुई है।
सीबीआई ने इस संबंध में राज्य के नियुक्ति और कार्मिक विभाग को एक पत्र भेजा है, लेकिन राज्य सरकार के अधिकारियों ने इसकी पुष्टि या खंडन करने से इनकार कर दिया। सीबीआई ने 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार की सिफारिशों पर मामले की जांच शुरू की थी।
नवंबर 2017 में, सीबीआई ने इस मामले को अपने हाथ में लिया और गोमती रिवर चैनलाइजेशन प्रोजेक्ट और गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के संबंध में विभिन्न रैंकों के सिंचाई विभाग के आठ इंजीनियरों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।
केंद्रीय जांच एजेंसी ने 17 फरवरी को वरिष्ठ सहायक राज कुमार यादव, परियोजना से जुड़ी एक निजी फर्म के दो निदेशकों हिमांशु गुप्ता और कविश गुप्ता और परियोजना के वरिष्ठ सलाहकार बद्री श्रेष्ठ के खिलाफ भी आरोपपत्र दाखिल किया था।
इस परियोजना में जलस्तर को बनाए रखने के लिए एक रबर बांध का निर्माण, एक स्टेडियम, 2,000 लोगों के लिए एक एम्फीथिएटर, साइकिल और जॉगिंग ट्रैक, बच्चों के लिए एक खेल क्षेत्र और एक संगीतमय फव्वारा शामिल था। प्रवर्तन विभाग (ईडी) ने गोमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार के संबंध में मार्च 2018 में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत एक आपराधिक मामला भी दर्ज किया था।
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