यूएन डेस्क/ भारत ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को बिना किसी विलंब के सुधार करने की जरुरत है अन्यथा उसे सशस्त्र संघर्षों, आतंकवाद, शरणार्थी संकट और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का सामना कर रही दुनिया में अपनी ‘‘प्रासंगिकता क्षीण होने’’ के, खुद के दिए जख्मों पर मरहम लगाना पड़ेगा।
‘रिपोर्ट ऑफ द सेक्रेटरी जनरल ऑन द वर्क ऑफ द ऑर्गेनाइजेशन’ पर सोमवार को महासभा के सत्र में भाग लेते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि 15 राष्ट्रों वाली परिषद केवल प्रधानता के बारे में है वह भी बहुत कम मकसद के साथ। अकबरुद्दीन ने कहा, ‘‘अगर नई वैश्विक चुनौतियों से निपटना है तो अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के, आधुनिक दुनिया से मेल ना खाने वाले मौजूदा ढांचे को बदलना अनिवार्य है। इस बदलाव की सबसे ज्यादा जरुरत सुरक्षा परिषद में है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें खामियों को सुधारने की जरुरत है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, यह करना हमारे लिए जरूरी है। भविष्य की तकनीकें अतीत के संघर्षों को तेज करें, इससे पहले यह काम करना आवश्यक है जबकि परिषद अपनी प्रासंगिकता क्षीण करने के, खुद के दिए जख्मों पर मरहम लगा रही है।’’ अकबरुद्दीन ने कहा कि हाल ही में संपन्न हुई संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय बैठक में देशों को सशस्त्र संघर्षों, आतंकवाद, बड़ी संख्या में लोगों के विस्थापन, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय चुनौतियों समेत वैश्विक चुनौतियों पर जोर देते हुए सुना गया।
साइबर युद्ध, मानव रहित हवाई ड्रोन और लड़ाकू रोबोट .. ये तीन तो उस प्रौद्योगिकी में बदलाव के उदाहरण मात्र हैं जो आने वाले समय में युद्ध के साजोसामान में बदलाव कर रही है और कई तरह के सवाल भी उठा रही है। उन्होंने कहा कि ना तो महासभा विकासात्मक और मानदंड संबधी पहलुओं से निपट रही है और ना ही सुरक्षा परिषद शांति एवं सुरक्षा संबंधी जटिलताओं का समाधान कर पा रही है।