TIL Desk लखनऊ:👉शनिवार को डॉ० राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय लखनऊ के डी.पी.आई.आई.टी आई.पी.आर चेयर द्वारा, पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसका विषय “बौद्धिक संपदा अधिकार पर व्यापक कार्यशाला: प्रारूपण, फाइलिंग और प्रबंधन” रहा। कार्यशाला में कई विद्वान वक्ता, डॉ इंदिरा द्विवेदी, मुख्य वैज्ञानिक सी.एस.आई.आर लखनऊ, डॉ विवेक श्रीवास्तव वरिष्ठ वैज्ञानिक सी०एस०आई०आर, आई०पी०आर चेयर के अध्यक्ष प्रो० डॉ० मनीष सिंह, डॉ विकास भाटी, निदेशक आई.पी प्रेसिस सम्मिलित हुए।
डी.पी.आई.आई.टी चेयर प्रो० डॉ० मनीष सिंह ने सभी का कार्यक्रम में स्वागत किया। उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य सम्मिलित हुए प्रतिभागियों का ज्ञानवर्धन है एवं आईपीआर विषय के बारे में जागरूकता जो कि उन्हें उनकी रचनाओं के संरक्षण में सहायक होगी । साथ ही आईपीआर के महत्व एवं देश के आर्थिक विकास में भूमिका के बारे में अवगत कराना है। कई बार सरकारी संस्थाएं भी आईपीआर से भली भांति अवगत नहीं होते हैं, इसीलिए अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए यह जानकारी होना आवश्यक है। उन्होंने आईपीआर का महत्व बताते हुए कहा कि वह एक कला है ना की कोई विज्ञान जिसे निरंतर अभ्यास से निखारा जा सकता है ।
राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय के कुलपति प्रो० डॉ अमरपाल सिंह ने सम्मेलन के विषय की सहारना की । उन्होंने बताया कि अपनी संपत्ति का संरक्षण करना उसे बनाने जितना ही महत्वपूर्ण होता है। जेरेमी बेंथम ने कहा है की कानून एवं संपत्ति साथ ही जन्म लेते हैं एवं उनके मरण भी साथ होता है। आईपीआर एक ऐसा क्षेत्र है जिसे हम अभी भी अन्वेषित कर रहे हैं और इसकी सही ऐसे पहलू है जो अभी भी हम नहीं जानते हैं। बौद्धिक संपदा यानी कि आईपीआर एक महत्वपूर्ण संपत्ति के रूप में उभर रही है। आवेदन ड्राफ्टिंग फाइलिंग यह सब कोई जानने वाली बातें नहीं है बल्कि यह अभ्यास से ही पारंगत की जा सकती है। लोगों को आईपीआर से अवगत करने के लिए यह कार्यशाला एक महत्वपूर्ण कदम है।
कार्यशाला में चार तकनीकी सत्रों में सभी प्रतिष्ठित वक्ताओं ने प्रतिभागियों को आई.पी.आर के विभिन्न विषयों जैसे कि आईपीआर आवेदन से लेकर फाइलिंग एवं मैनेजमेंट आदि पर प्रबुद्ध किया। प्रतिष्ठित वक्ता डॉ विवेक श्रीवास्तव ने पहले तकनीकी सत्र में प्रायर आर्ट के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि आर्ट किसी भी क्षेत्र में उपयोगी जानकारी, तरीके या अभ्यास को कहा जाता है। तो प्रायर आर्ट का मतलब हुआ, किसी भी क्षेत्र में पहले से मौजूद जानकारी । इसी जानकारी के संदर्भ में नए आविष्कारों का मूल्यांकन किया जाता है।
पेटेंट के लिए पहला कदम प्रायर आर्ट के बारे में शोध करना होता है। पेटेंट प्राथमिक तौर पर एक बिजनेस आइडिया होता है इसीलिए निवेशकों को अपने निवेश का लाभ मिलना आवश्यक होता है। दूसरा कदम पेटेंटेबिलिटी सच होता है जिसका उद्देश्य यह जानना होता है कि कोई अविष्कार नवीन है भी कि नहीं। उन्होंने उदाहरण द्वारा समझाया कि यदि एक कुर्सी में है पांचवा पैर भी जोड़ दिया जाए तो वह इसे नवीन तो बनता है लेकिन यह बदलाव तो स्पष्ट हुआ इसीलिए यह पेटेंट नहीं कहलाएगा।
डी.पी.आई.आई.टी चेयर प्रो डॉक्टर मनीष सिंह दूसरे तकनीकी सत्र में पेटेंट ड्राफ्टिंग एवं फाइलिंग की प्रक्रिया के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि भारत विश्व में पेटेंट फाइलिंग में छठे स्थान पर है एवं वर्ष 2023 में पेटेंट फाइलिंग में 15.7% की बढ़ोतरी देखी गई। इस प्रक्रिया में सबसे पहले फार्म एक में सही एवं पूर्ण जानकारी देनी होती है। यह करने के लिए हमें यह जानना आवश्यक है कि वह अविष्कार है, पेटेंट करने योग्य है, नवीन है। उन्होंने बताया कि पेटेंट स्पेसिफिकेशन अलग-अलग प्रकार के होते हैं जैसे कि क्लेम्स जो कि इसका सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। उन्होंने विस्तार से पूरे पेटेंट फाइलिंग एवं ड्राफ्टिंग प्रक्रिया को सरल तरीके से प्रतिभागियों को समझाया।
कार्यशाला के तीसरे तकनीकी सत्र में डॉक्टर इंदिरा द्विवेदी ने पेटेंट फाइलिंग एवं प्रॉसीक्यूशन के बारे में बताया। उन्होंने विभिन्न प्रकार के पेटेंट आवेदनों पर प्रकाश डाला एवं समकालीन उदाहरण जैसे की डीऑक्सी ग्लूकोस जो की कोविड-19 के उपचार में इस्तेमाल हुआ था उसके पेटेंट के बारे में समझाया। कार्यक्रम में आई०पी०आर चेयर के अध्यक्ष प्रो० मनीष सिंह, सेंटर के निदेशक डॉ०विकास भाटी, डॉ० अंकिता यादव, डॉ०मलय पांडेय, डॉ० मनीष बाजपाई, ऋषी शुक्ला हिमांशी तिवारी और अभिनव शर्मा समेत अन्य लोग मौजूत रहे।